सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं, मजाकः हाईकोर्ट

punjabkesari.in Tuesday, Mar 31, 2015 - 09:33 PM (IST)

रांचीः सरकारी स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर मजाक चल रहा है। बच्चों की पढ़ाई के लिए शिक्षक नहीं हैं। बगैर शिक्षकों की चल रही पढ़ाई मजाक नहीं तो क्या है। यहां तक कि सत्र बीत जाता है और बच्चों को किताबें नहीं मिलतीं। सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि इन स्कूलों में अधिकांश गरीब के ही बच्चे पढ़ते हैं। यह गरीबों के साथ मजाक भी है। 


गौरतलब है कि झारखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वीरेंदर सिंह और जस्टिस अपरेश सिंह की अदालत ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह मौखिक टिप्पणी की। अदालत ने मानव संसाधन विकास सचिव से शपथ-पत्र दाखिल कर यह बताने को कहा कि राज्य में शिक्षकों के कितने पद स्वीकृत हैं, कितने पद रिक्त हैं और कितनों पर नियुक्ति प्रक्रिया चल रही है और सही स्थिति क्या है। सत्र शुरू होने वाला है। अबतक कितने बच्चों को किताबें मिली हैं। सचिव को 20 अप्रैल तक विस्तृत जानकारी देने को कहा गया। 


अदालत ने कहा कि अप्रैल से सत्र शुरू होता है। इस माह में बच्चों को किताबें मिल जानी चाहिए। कम-से-कम 90 फीसदी बच्चों को, लेकिन ऐसा होता नहीं है। इस संबंध में काफी पहले ही कोर्ट ने सरकार से जानकारी मांगी थी, लेकिन सरकार ने पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। एक चार्ट उपलब्ध कराया गया है, लेकिन चार्ट में किसी भी अधिकारी का हस्ताक्षर नहीं है, जिससे प्रतीत होता है कि सरकार इसके प्रति गंभीर नहीं है। सरकार को अपना रवैया बदलना होगा। छह माह में रिक्त पदों को भरना होगा। कोर्ट पूरे मामले की मॉनिटरिंग करेगा। नियुक्ति होगी, तो यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा। उन्हें रोजगार के लिए दूसरी जगह नहीं जाना पड़ेगा। 


हालांकि सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि राज्य में करीब 40 हजार शिक्षकों के पद रिक्त हैं, जिसमें प्राथमिक, मध्य, उच्च और प्लस टू स्कूल शामिल हैं। प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया जारी है। शेष में भी प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी। 


उल्लेखनीय है कि राज्य में शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के लिए भीम प्रभाकर और सुशील कुमार तिवारी ने जनहित याचिका दायर की है। कहा गया है कि राज्य के स्कूलों में कानून का पालन नहीं किया जा रहा है। सरकारी स्कूलों में भी इसका पालन नहीं हो रहा है। नियमों के अनुसार 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन किसी भी स्कूल में ऐसा नहीं है।

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