'मातृभाषा मां की तरह तो हिंदी हमारी दादी..', भाषा विवाद पर बोले आंध्र प्रदेश के डिप्टी CM पवन कल्याण

punjabkesari.in Friday, Jul 11, 2025 - 11:14 PM (IST)

हैदराबाद: आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और जनसेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण ने हैदराबाद स्थित जीएमसी बालयोगी स्टेडियम में आयोजित राज्य भाषा विभाग के स्वर्ण जयंती समारोह में भाषाई समावेश और बहुभाषिकता की आवश्यकता पर बल दिया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हिंदी को लेकर देश में फैली भाषाई असहिष्णुता और कट्टरता को त्यागकर, उसे एकता और विकास का माध्यम बनाया जाना चाहिए।

हिंदी का विरोध नहीं, अंधविरोध अनुचित

पवन कल्याण ने कहा: “हम विदेशी भाषाएं जैसे अंग्रेज़ी या फ्रेंच सीखने को गर्व समझते हैं, लेकिन हिंदी बोलने में संकोच करते हैं। यह मानसिकता हमें पीछे खींचती है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि वह हिंदी के विरोधी नहीं हैं, बल्कि हिंदी को ज़बरदस्ती थोपने के खिलाफ हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि हिंदी आज शिक्षा, व्यापार और नौकरियों में एक अहम भाषा बन चुकी है। ऐसे में इसका विरोध करना युवाओं के लिए अवसर खोने जैसा होगा।

 'तमिल होकर भी हिंदी से प्रेम करते थे अब्दुल कलाम'

अपने भाषण में उन्होंने भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण दिया, जिन्होंने तमिल होने के बावजूद हिंदी को अपनाया और उसका सम्मान किया। उन्होंने कहा: “हमें हिंदी से नहीं डरना चाहिए, बल्कि गर्व करना चाहिए कि हम बहुभाषी देश के नागरिक हैं। मातृभाषा मां की तरह है, तो हिंदी हमारी दादी जैसी है।”

NEP 2020 और बहुभाषिक शिक्षा नीति का समर्थन

पवन कल्याण ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 छात्रों को भाषाओं के चयन में विकल्प देती है, जिससे हिंदी को अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक रूप से अपनाया जा सकता है। उन्होंने इस नीति को "भाषाई समरसता का मॉडल" बताया और इसके ज़रिए भारत की भाषाई विविधता को सशक्त करने का प्रयास कहा।

हिंदी को वैकल्पिक विषय के रूप में लागू करने की योजना

हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने स्कूलों में हिंदी को वैकल्पिक विषय के रूप में लागू करने की योजना की घोषणा की है। पवन कल्याण ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे राज्य के छात्र राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हो सकेंगे। उन्होंने यह भी घोषणा की कि सरकार हिंदी शिक्षकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने पर विचार कर रही है।

भाषा को बनाएं एकता का माध्यम, न कि राजनीति का औजार

पवन कल्याण ने इस अवसर पर चेतावनी दी कि भाषा को राजनीतिक हथियार बनाना देश के लिए खतरनाक हो सकता है। उन्होंने कहा: “भाषाई कट्टरता सांस्कृतिक गर्व नहीं है। हमें अपनी मातृभाषा के साथ दूसरी भारतीय भाषाओं को भी अपनाना चाहिए। इससे हमारी पहचान मजबूत होगी, मिटेगी नहीं।”

भाषाई राजनीति और विवाद

यह बयान ऐसे समय में आया है जब दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु, में हिंदी थोपने के विरोध में ज़ोरदार आवाज़ें उठ रही हैं। डीएमके और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों का कहना है कि केंद्र सरकार हिंदी को जबरन लागू कर रही है, जिससे स्थानीय भाषाओं और संस्कृति पर खतरा मंडरा रहा है। पवन कल्याण का यह बयान इस पृष्ठभूमि में एक संतुलित और समन्वयकारी दृष्टिकोण के रूप में देखा जा रहा है।


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Content Writer

Pardeep

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