नागौर का 539 साल पुराना ''कांच का मंदिर'', हाथी दांत से नक्काशी और रहस्यमयी ताले की अनसुलझी पहेली
punjabkesari.in Thursday, Sep 05, 2024 - 12:22 PM (IST)
नेशनल डेस्क: राजस्थान के नागौर शहर में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का 539 साल पुराना मंदिर स्थित है। यह मंदिर धार्मिक और पर्यटक दोनों के लिए खास आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर में भगवान ऋषभदेव की अष्टधातु से बनी मूर्ति स्थापित है, जो शहर के खत्रीपुरा में चोरडिया परिवार के घर से प्राप्त हुई थी। यह मूर्ति संवत 1541 में इस मंदिर में प्रतिष्ठित की गई थी।
कांच और चांदी की अद्भुत नक्काशी
मंदिर की विशेषता इसकी कांच और चांदी की अद्भुत नक्काशी है, जिसके कारण इसे 'कांच का मंदिर' कहा जाता है। मंदिर की कांच की सजावट, नक्काशी और डिजाइन के लिए यह देशभर में प्रसिद्ध है। मंदिर में भगवान ऋषभदेव की मूर्ति के बाएं हिस्से में पार्श्वनाथ भगवान और दाएं हिस्से में आदेश्वर भगवान की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यहां गिरनार, पावापुरी, शत्रुजा महातीर्थ और सम्मेद शिखरजी जैसे तीर्थस्थलों के वर्षों पुराने पट भी लगाए गए हैं। यह मंदिर जैन धर्मावलंबियों के साथ-साथ देशी और विदेशी पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है।
मंदिर में मनाया जाता है 'माळ महोत्सव'
मंदिर के पुजारी हेमंत और मुनीम गोरधनदास के अनुसार, भारत में केवल नागौर के इस मंदिर में 'माळ महोत्सव' मनाया जाता है, जो संवत्सरी से एक दिन पहले आयोजित होता है। इस महोत्सव के दौरान भगवान को माला पहनाने वाले व्यक्ति का जुलूस शहर में निकाला जाता है और उसे सम्मान के साथ घर तक पहुंचाया जाता है। हर महीने यहां करीब दो से ढाई हजार लोग आते हैं, जिनमें विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं।
दरवाजों पर लगे तालों का रहस्य आज भी बरकरार
मंदिर के ट्रस्ट के अध्यक्ष धीरेन्द्र समदडिया ने बताया कि 'कांच का मंदिर' नागौर के जैन श्वेतांबर मंदिर मार्गी ट्रस्ट के अधीन है। मंदिर के दरवाजों पर हाथी दांत से नक्काशी की गई है, जो बहुत ही सुंदर और अनूठी है। लेकिन दरवाजों पर लगे ताले का रहस्य अब तक हल नहीं हो पाया है। कई कारीगरों को बुलाकर भी ताले के mechanism को समझने की कोशिश की गई, लेकिन इसका खुलासा नहीं हो सका है।