खेत बना क्रिकेट का मैदान, जशपुर की 5 आदिवासी बेटियां बनीं नेशनल प्लेयर
punjabkesari.in Monday, Jan 13, 2025 - 10:14 AM (IST)
नेशनल डेस्क. छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की पांच आदिवासी बेटियों ने साबित कर दिया है कि मेहनत और जज्बे से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। जशपुर के सरकारी प्री-मैट्रिक आदिवासी छात्रावास में रहने वाली ये लड़कियां अब नेशनल क्रिकेट खिलाड़ी बन गई हैं। इनमें से आकांक्षा रानी को बीसीसीआई की अंडर-19 टीम में चुना गया है, जबकि तुलसिका भगत, एंजिल लकड़ा, नितिका बाई और अल्का रानी कुजूर अंडर-15 नेशनल टूर्नामेंट खेल रही हैं।
खेत से क्रिकेट ग्राउंड तक का सफर
इन बेटियों ने हॉस्टल के पास स्थित खेतों में ही क्रिकेट खेलना शुरू किया। शुरुआत में इनके पास न तो कोच था और न ही क्रिकेट खेलने का साधन। छात्रावास की अधीक्षक पंडरी बाई ने इन्हें पहली क्रिकेट किट दिलवाई। उन्होंने बताया कि शुरुआत आकांक्षा से हुई। पंडरी ने अपनी बेटी आकांक्षा के लिए कोच रखा, जो मेहनत के बल पर स्टेट टीम तक पहुंची। इसके बाद उन्होंने सोचा कि हॉस्टल की बाकी लड़कियां भी आकांक्षा की तरह आगे बढ़ सकती हैं।
कोच की भूमिका और सामूहिक प्रशिक्षण
पंडरी बाई ने कोच संतोष कुमार से बात की। कोच ने सहमति जताई कि वे आकांक्षा के साथ हॉस्टल की दूसरी लड़कियों को भी ट्रेनिंग देंगे। एक ही फीस में सभी लड़कियों को सिखाने का फैसला लिया गया। धीरे-धीरे इन बच्चियों ने अपने खेल में सुधार किया और अब नेशनल लेवल पर अपनी पहचान बना रही हैं।
पिता का सपना बेटी ने किया पूरा
आकांक्षा के पिता शंकर राम खुद क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण उनका सपना अधूरा रह गया। उन्होंने अपनी बेटी के लिए वह सपना पूरा करने का ठाना। शंकर और उनकी पत्नी पंडरी ने खेत को मैदान में बदला और अपनी सैलरी से पैसे बचाकर कोच को रखा। तत्कालीन कलेक्टर रवि मित्तल की मदद से मैदान में नेशनल पिच तैयार की गई।
सोशल मीडिया ने दी नई राह
शुरुआत में समझ नहीं आया कि आगे कैसे बढ़ा जाए, तब आकांक्षा के वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किए गए। जशपुर जिले के बीसीसीआई सचिव अनिल श्रीवास्तव ने आकांक्षा के बैटिंग वीडियो देखे और उनके टैलेंट को पहचाना। उन्होंने खुद आकर परिवार से मुलाकात की और आगे का रास्ता दिखाया।
बेटियों की सफलता का संदेश
इन बेटियों ने दिखा दिया कि अगर सही मार्गदर्शन और मेहनत हो, तो कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। आज ये लड़कियां न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रही हैं। इनके संघर्ष और सफलता की कहानी अन्य बच्चों के लिए प्रेरणा बन गई है।