26/11 मुंबई हमले की गवाह का छलका दर्द, लोग मुझे कहते हैं 'कसाब की बेटी'

punjabkesari.in Tuesday, Nov 27, 2018 - 04:18 PM (IST)

मुंबईः मुंबई पर हुए आतंकी हमले को दस साल हो गए हैं लेकिन देविका आज भी उस दिन को याद करके सिहर उठती है। उसके कानों में लोगों की चीखें और गोलियों की आवाजें आज भी गूंजती है। 26 नवंबर, 2008 को मुंबई पर जब आतंकी हमला हुआ देविका तब नौ साल की थी। उस हमले के बाद देविका की पूरी जिंदगी ही बदल गई। देवका वो मुख्य गवाह है जिसकी गवाही को कोर्ट ने मान्य किया और कसाब को फांसी की सजा सुनाई गई। देविका अब 11वीं कक्षा में पढ़ती है। देविका ने बताया कि मां का 2006 में निधन हो गया था। उनके परिवार में पिता और उसके दो भाई हैं। 
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पहचाना कसाब को
देविका ने बताया कि 26 नवंबर, 2008 की रात को वह अपने पिता नटवरलाल रोटवानी और छोटे भाई जयेश के साथ अपने बड़े भाई भरत को मिलने पुणे जा रही थी। वो लोग सीएसटी के प्लैटफॉर्म 12 पर खड़े होकर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे कि तभी लोगों के चीखने और चिल्लाने की आवाजें आने लगी। लोगों की चीखें गोलियों और धमाके में दब रही थीं। तभी मेरे पिता ने मेरा और भाई का हाथ पकड़ा और भागने लगे लेकिन तभी मेरे पैर पर गोली लगी और मैं गिर गई। जब आंख खुली तो सामने एक शख्स हंसते हुए लोगों पर गोलियां बरसा रहा था। मैं फिर से बेहोश हो गई और जब दोबारा होश आया तो खुद को कामा अस्पताल में पाया जहां से मुझे जेजे अस्पताल में रैफर किया गया। गनीमत यह रही कि मेरे पिता और भाई इस हमले में बच गए। छह महीने तक अस्पताल में मेरा इलाज चला और छह बार मेरे पैर की सर्जरी हुई। 
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मकान मालिक सोचा मर गए किराएदार
देविका ने बताया कि उसके ठीक होने पर वे लोग अपने बांद्रा (ईस्ट) के कदम चॉल स्थित भाड़े के घर में गए तो वहां से हमारा सारा सामान हटा दिया गया था। देविका के मुताबिक मकान मालिक को लगा कि हम लोग उस हमले में मारे गए हैं। और उसने बिना कोई खोजबीन या छानबीन किए हमारा सामान बेच दिया। हमारी जिंदगी भर की जमा-पूंजी और दस्तावेज हमें कुछ नहीं मिला। सामान के नाम पर बस एक पेटी मिली, जो खाली थी। देविका ने बताया कि गोली लगने के बाद पिता और छोटा भी हर दम मेरे साथ अस्पताल में ही रहते थे इसी बीच कोई भी घर नहीं गया। हम लोग मुंबई से राजस्थान चले गए। हमने सोचा धीरे-धीरे सब सामान्य हो जाएगा। फिर एक दिन मुंबई पुलिस का फोन आया कि क्या आप कसाब को पहचान सकती हैं और उसके खिलाफ गवाही दे सकती हैं। पहले तो मैं सहम गई लेकिन तब पिता ने समझाया कि देश की खातिर और इस हमले में मारे गए लोगों की खातिर तुम्हे आगे आना होगा। पिता की बात सुनकर मेरी आंखों के सामने फिर वहीं खौफनाक हंसी और उसकी बर्बरता आ गई। मैंने खुद को मजबूत किया और वैसाखी के सहारे कोर्ट में गवाही देने पहुंच गई। मेरे सामने तीन लोगों को लाया गया जिनमें से एक कसाब भी थी। मैंने जज के सामने उसे पहचान लिया। कोर्ट में कसाब को देखते ही मन किया कि इसपर अपनी वैसाखी से हमला कर दूं मगर मैंने खुद पर काबू रखा।
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बदल गई मेरी दुनिया
बकौल देविका जैसे ही मेरे कसाब को पहचानने की खबर मीडिया में आई तो रिश्तेदारों और आसपड़ोस के लोगों ने मुंह मोड़ लिया। पिता मेवे का कारोबार करते थे वो ठप्प हो गया। स्कूल से मेरा नाम काट दिया गया। हर कोई बुलाने से कतराता था, सभी को इस बात का डर था कि कहीं आंतकवादी उनके घरों पर भी हमला न कर दे। लोग तो मुझे कसाब की बेटी कहकर बुलाने लग गए थे, मुझे बहुत बुरा लगता था कि मैंने क्या गलत किया है। फिर एक एनजीओ की मदद से मुझे सातवीं क्लास में दाखिला मिल गया। आज भी हमारे घर की आर्थिक तंगी पटरी पर नहीं लौटी है। बड़े भाई की आमदनी से घर खर्च चल रहा है। हमने राज्य के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री सभी से मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी तरफ से कोई जवाब या सहायता नहीं आई। कई मंत्रालयों के चक्कर भी काटे लेकिन किसी ने सुध नहीं ली।

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Seema Sharma

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