25 करोड़ बच्चों की शिक्षा के लिए हुआ 20 साल लम्बा संघर्ष

punjabkesari.in Saturday, Jan 27, 2018 - 01:53 PM (IST)

नेशनल डेस्कः मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2016 में देश में 6 से 14 वर्ष की उम्र तक के बच्चों की गिनती करीब 25 करोड़ है तथा ये सभी बच्चे शिक्षा के अधिकार कानून के तहत शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार रखते हैं पर इन बच्चों को यह अधिकार दिलाने के लिए 20 वर्ष लम्बा संघर्ष करना पड़ा है। यह अधिकार संविधान में किए गए 86वें संशोधन के चलते प्राप्त हो सका है। इसी संशोधन के तहत राइट टू एजुकेशन एक्ट (आर.टी.ई.) पास किया गया है।

आर.टी.ई. में क्या है व्यवस्था
इस कानून के तहत 6 से 14 वर्ष की उम्र के सभी बच्चे देश में फ्री शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार रखते हैं। इसी कानून के तहत बच्चों तथा अध्यापकों का अनुपात भी तय किया गया है। कानून के अनुसार 25 बच्चों के लिए एक अध्यापक होना जरूरी है। हर स्कूल में गरीब बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटेें इसी कानून के तहत आरक्षित रखी गई हैं। शिक्षा के स्तर को सुधारने की कोशिशें तथा नियम भी इसी कानून के तहत ही पारिभाषित किए गए हैं। हर तीसरे वर्ष स्कूलों के आधारभूत ढांचे में सुधार का भी नियम बनाया गया है।

यह है राइट टू एजुकेशन एक्ट का इतिहास
2009 में डा. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते संसद में पास किए गए राइट टू एजुकेशन एक्ट के लिए असल लड़ाई 1989 से शुरू हुई थी। इसकी शुरूआत कर्नाटक में मोहिनी जैन द्वारा सरकार के खिलाफ हाई कोर्ट में दायर किए गए केस के बाद हुई थी। इस केस में दलील दी गई थी कि देश के हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए तथा किसी बच्चे को उक्त अधिकार से इस आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता कि वह स्कूल की फीस अदा करने योग्य नहीं है। इस मामले ने देशव्यापी बहस का रूप लिया तथा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के रहते संविधान के 86वें संशोधन हेतु राज्यसभा में बिल पास किया गया तथा उस समय मूल अधिकारों की सूची में 21ए धारा जोड़ी गई। इसके पश्चात डा. मनमोहन सिंह की सरकार आने के बाद शिक्षा के अधिकार को अमली जामा पहनाने हेतु 2009 में राइट टू एजुकेशन एक्ट पास किया गया तथा 1 अप्रैल, 2010 को यह कानून लागू हो गया।
 


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