1984 सिख विरोधी दंगे: सोशल मीडिया और फिल्मों में है उस मंजर की कहानी
punjabkesari.in Tuesday, Dec 18, 2018 - 11:08 AM (IST)

नई दिल्ली (नवोदय टाइम्स): 84 का वो मंजर, जिसे सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आंसू आते हैं, इस दर्द को महसूस करना है या फिर उन दिनों क्या हुआ था, इसे देखना है तो इसके लिए कई फिल्में भी बनाई जा चुकी हैं,जिसमें इस घटना के बाद किस तरह कत्लेआम हुआ और क्या बीता था लोगों पर, दिखाया गया है।
अगर इस मंजर को फिर से देखना है तो इसके लिए 2005 में बनी फिल्म अम्मू देखिए। ये फिल्म बतौर सर्वेश्रेष्ठ की श्रेणी में रखी गई जिसमें दिखाया गया था कि किस तरह लोगों ने कत्लेआम किया, लेकिन इस फिल्म में जहां एक तरफ कत्लेआम दिखाया गया कुछ ऐसी भी चीजें दिखाई कि जिसने ये बताया कि दंगााई हर व्यक्ति नहीं था बल्कि उनकी दंगाइयों के बीच उसी धर्म के वो लोग भी थे जो दंगे में मारे जा रहे लोगों को बचा रहे थे। इस फिल्म में ये भी दिखाया गया है कि जिस तरह से सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह हर उस धर्म से जुड़ा व्यक्ति जिस धर्म के लोगों ने कत्लेआम किया उसमें हर कोई गलत नहीं था, बल्कि जहां दंगाई चंद संख्या में थे वहीं बचाने वालों की संख्या उनके कई गुना अधिक थी।
इसी तरह दंगों पर बनी डॉक्यूमेंट्री जो प्रदीप भारद्वाज ने बनाई थी। इस फिल्म में उस रात को बयां किया गया कि किस तरह एक पिता और मां अपने जवान बेटे को जिंदा जलते देखते हैं। लेकिन फिर भी इन लोगों की देशभक्ति कम नहीं होती है और उनके बच्चे आज भी महफूज रहते हैं। ये फिल्म अवार्ड विनिंग थी। दंगों पर 2015 में बनी फिल्म हवाएं ने नया सच सभी के सामने उजागर किया। इस फिल्म में बताया गया किस तरह से ये दंगा प्लान किया गया था, इसके पीछे क्या राजनैतिक कारण थे। यही नहीं, फिल्म में ये भी दिखाया गया कि चंद लोगों से किस तरह से कत्लेआम करवाया गया और किस तरह से इन लोगों को राजनैतिक लोगों ने बचाया।
फिल्म की कहानी आज एक सच की तरह दिखती है। क्योंकि सिख दंगों में 34 साल बाद आए फैसले ने ये बता दिया कि इस दंगे के पीछे एक स्क्रिप्ट थी जो राजनेताओं के द्वारा लिखी गई थी और उन्हें संरक्षण भी मिला हुआ था। हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में इस बात को कहा है। हवाएं फिल्म में भी इस बात को उठाया गया था कि कि चंद लोगों ने किस तरह नरसंहार किया और एक धर्म को बदनाम किया वहीं एक धर्म को उसका दुश्मन बना दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद करीब 12 से अधिक फिल्मों पर बैन लगा जो सिनेमाहॉल में तो नहीं लगीं, लेकिन ये फिल्में सोशल मीडिया पर जरूर चलीं, जिनमें उन दिनों किस तरह से कत्लेआम किया गया और किस तरह से पूरा सिस्टम मौन रहा ये सब दिखाया गया है।