किसी भी प्रकार का सुख नहीं भोग पाते ऐसे लोग, चाहे लगा लें एड़ी चोटी का जोर
punjabkesari.in Friday, Jan 08, 2016 - 04:16 PM (IST)
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श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप व्याख्याकार : स्वामी प्रभुपाद अध्याय 4 (दिव्यज्ञान)
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मन:।। 40।।
अज्ञ:—मूर्ख, जिसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं है; च—तथा; अश्रद्दधान:—शास्त्रों में श्रद्धा से विहीन; च—भी; संशय—शंकाग्रस्त; आत्मा—व्यक्ति; विनश्यति—गिर जाता है; न—न; अयम्—इसमें; लोक:—जगत; अस्ति—है; न—न तो; पर:—अगले जीवन में; न—नहीं; सुखम्—सुख; संशय—संशयग्रस्त; आत्मन:—व्यक्ति के लिए।
अनुवाद : किन्तु जो श्रद्धाविहीन व्यक्ति शास्त्रों में संदेह करते हैं वे ईश्वर भावनामृत नहीं प्राप्त करते, अपितु नीचे गिर जाते हैं। संशयात्मा के लिए न तो इस लोक में, न ही परलोक में कोई सुख है।
तात्पर्य: भगवद् गीता सभी प्रामाणिक एवं मान्य शास्त्रों में सर्वोत्तम है। जो लोग श्रद्धाविहीन हैं उनमें न तो प्रामाणिक शास्त्रों के प्रति कोई आस्था है और न उनका ज्ञान होता है और कुछ लोगों को यद्यपि उनका ज्ञान होता है और उनमें से वे उद्धरण देते रहते हैं, किन्तु उनमें वास्तविक विश्वास नहीं होता। कुछ लोग जिनमें भगवद् गीता जैसे शास्त्रों में श्रद्धा होती भी है तो वे न तो भगवान् श्री कृष्ण में विश्वास करते हैं न उनकी पूजा करते हैं। ऐसे लोगों को कृष्ण भावनामृत का कोई ज्ञान नहीं होता। वे नीचे गिरते हैं। उपर्युक्त सभी कोटि के व्यक्तियों में जो श्रद्धालु नहीं हैं और सदैव संशयग्रस्त रहते हैं, वे तनिक भी उन्नति नहीं कर पाते। जो लोग ईश्वर तथा उनके वचनों में श्रद्धा नहीं रखते, उन्हें न तो इस संसार में और न भावी लोक में कुछ हाथ लगता है। उनके लिए किसी भी प्रकार का सुख नहीं है।
अत: मनुष्य को चाहिए कि श्रद्धाभाव से शास्त्रों के सिद्धांतों का पालन करे और ज्ञान प्राप्त करे।
(क्रमश:)
