श्रीकृष्ण जन्मअष्टमी व्रत कब और कैसे रखा जाए?

punjabkesari.in Friday, Sep 04, 2015 - 11:00 AM (IST)

परंपरानुसार एवं स्थानीय परिस्थितिवश मथुरा व गोकुल में हर बार की तरह भगवान कृष्ण के जन्म पर नंदोत्सव अगले दिन मनाया जा रहा है। भारत के कई नगरों में मथुरा की परंपरा के अनुसार चला जाता है परंतु शुद्ध ज्योतिष के आधार पर ही व्रत एवं महोत्सव मनाने का अपना ही महत्व एवं सार्थकता रहती है।

 व्रत कब और कैसे रखा जाए?
व्रत के विषय में इस बार किसी प्रकार भी भ्रांति नहीं है। फिर भी कई लोग, अद्र्धरात्रि पर रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी और अष्टमी पर व्रत रखते हैं। कुछ भक्तगण उदयव्यापिनी अष्टमी पर उपवास करते हैं। 
 
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शास्त्रकारों ने व्रत-पूजन, जपादि हेतु अद्र्धरात्रि में रहने वाली तिथि को ही मान्यता दी है। विशेषकर स्मार्त लोग अद्र्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी को यह व्रत करते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़ आदि में स्मार्त धर्मावलम्बी अर्थात गृहस्थ लोग हजारों सालों से इसी परंपरा का  अनुसरण करते हुए सप्तमी युक्ता अद्र्धरात्रिकालीन वाली अष्टमी को व्रत, पूजा आदि करते आ रहे हैं जबकि मथुरा, वृंंदावन सहित उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में उदयकालीन अष्टमी के दिन ही कृष्ण जन्मोत्सव मनाते आ रहे हैं। 
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भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की परंपरा को आधार मानकर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के दिन ही केन्द्रीय सरकार अवकाश की घोषणा करती है। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युता जन्माष्टमी व्रत हेतु ग्रहण करते हैं।
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सुबह स्नान के बाद व्रतानुष्ठान करके ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र जाप करें । पूरा दिन व्रत रखें। फलाहार कर सकते हैं। रात्रि के समय ठीक 12 बजे, लगभग अभिजित मुहूर्त में भगवान की आरती करें। प्रतीक स्वरूप खीरा फोड़ कर, शंख ध्वनि से जन्मोत्सव मनाएं। चंद्रमा को अर्ध्य देकर नमस्कार करें तत्पश्चात मक्खन, मिश्री, धनिया, केले, मिष्ठान आदि का प्रसाद ग्रहण करें और बांटें। अगले दिन नवमी पर नन्दोत्सव मनाएं। 
 
—मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषविद्

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