राज की बात: क्यों कुछ स्थानों पर होता है भूतों-प्रेतों का साया

punjabkesari.in Wednesday, Sep 30, 2015 - 03:07 PM (IST)

इस सृष्टि में जो उत्पन्न हुआ है उसका नाश भी होना है व दोबारा उत्पन्न होकर फिर से नाश होना है यह क्रम नियमित रूप से चलता रहता है। सृष्टि के इस चक्र से मनुष्य भी बंधा है। इस चक्र की प्रक्रिया से अलग कुछ भी होने से भूत-प्रेत की योनी उत्पन्न होती है। जैसे अकाल मृत्यु का होना एक ऐसा कारण है जिसे तर्क के दृष्टिकोण पर परखा जा सकता है। हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देती किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं। 

भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां सक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।

सृष्टि के चक्र से हटकर आत्मा भटकाव की स्थिति में आती हैं। इसी प्रकार की आत्माओं की उपस्थिति का अहसास हम प्रेत के रूप में करते हैं। अधिकांशतः आत्माएं अपने जीवन संपर्क में आने वाले व्यक्तियों को ही अपनी ओर आकर्षित करती हैं इसलिए उन्हें इसका बोध होता है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे जल में डूबकर, बिजली द्वारा, अग्नि में जलकर, लड़ाई-झगड़े में, प्राकृतिक आपदा से मृत्यु व अकस्मात होने वाली अकाल मृत्यु व दुर्घटनाएं भी बढ़ रही हैं और भूत-प्रेतों की संख्या भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है। अस्वाभाविक व अकस्मात होने वाली मृत्यु से मरने वाले प्राणियों की आत्मा भटकती रहती हैं, जब तक कि वह सृष्टि के चक्र में प्रवेश न कर जाए, तब तक ये भटकती आत्माएं ही प्रेत होते हैं। इनका सृष्टि चक्र में प्रवेश तभी संभव होता है जब वे मनुष्य रूप में अपनी स्वाभाविक आयु को प्राप्त करती हैं।

मृत्यु के लंबे समय के बाद व मोक्ष के आभाव में प्रेत आदि शक्तियां अधिक सूक्ष्म होती जाती हैं व अनिष्ट लोकों में रहने लगती हैं। अतः जिन प्रेत आदि शक्तियों की आध्यात्मिक शक्ति न्यूनतम होती है, वे भुवर्लोक में रहती हैं। जो अनिष्ट शक्तियां नर्क की गहराइयों में रहती हैं, वो अधिक बलवान व दुष्ट होती हैं। पृथ्वी पर प्रेत आदि शक्तियों का अस्तित्व अनेक स्थानों पर होता है। जीवित व निर्जीव वस्तुओं में वे अपने लिए केंद्र बना सकती हैं। जहां वे अपनी शक्ति संग्रहित कर सकती हैं, उसे केंद्र कहते है। केंद्र उनके लिए प्रवेश करने का स्थान होता है तथा वे वहां से शक्ति प्रक्षेपित कर सकती हैं। प्रेत आदि अपने लिए साधारणतः मनुष्य, वृक्ष, घर, बिजली के उपकरण आदि में केंद्र बनाती हैं। जब वे मनुष्य में अपने लिए केंद्र बनाती हैं, तब उनका उद्देश्य होता है अपनी शेष बची इच्छाओं व वासनाओं की पूर्ति करना।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com


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