नाटो के साइबर डिफेंस यूनिट में शामिल हुआ दक्षिण कोरिया, बढ़ी चीन की टेंशन
punjabkesari.in Wednesday, May 11, 2022 - 06:17 PM (IST)
इंटरनेशनल डेस्कः दक्षिण कोरिया 5 मई को नाटो के साइबर रक्षा समूह में शामिल हो गया। जापान के बाद दक्षिण कोरिया समूह में शामिल होने वाला दूसरा पूर्वी एशियाई देश बन गया है। कहा जा रहा है कि दक्षिण कोरिया के इस फैसले से चीन और पुराने दुश्मन उत्तर कोरिया के साथ तनाव बढ़ सकता है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि एशिया में यूक्रेन जैसे हालात बन सकते हैं। दक्षिण कोरिया 2019 से NATO के कोऑपरेटिव साइबर डिफेंस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (CCDCOE) के साथ जुड़ने की कोशिश कर रहा था। साइबर सिक्योरिटी रिसर्च, ट्रेनिंग को ध्यान में रखते हुए इसकी स्थापना मई 2008 में हुई थी।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र दा ग्लोबल टाइम्स के संपादक हू शिन ने लिखा, 'अगर दक्षिण कोरिया ने अपने पड़ोसियों के लिए मुश्किलें तैयार करने का रास्ता अपनाया है, तो इसका अंत यूक्रेन जैसा हो सकता है।' खास बात है कि साइबर सुरक्षा समूह NATO की कमान संरचना से अलग है। इसके बावजूद चीन के सैन्य जानकारों ने कथित तौर पर कहा कि बीजिंग इस समूह में अपने पड़ोसी और अमेरिका के साझेदार के शामिल होने को लेकर चिंतित है। साथ ही यह भी कहा गया कि इससे क्षेत्र में चीनी सुरक्षा हितों को जोखिम हो सकता है।
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के रिटायर्ड कर्नल के मुताबिक, चीन समझता है कि दक्षिण कोरिया का समूह में जाना गठबंधन के साथ सदस्यता को नहीं दिखाता है, लेकिन साइबर युद्ध को नया युद्ध क्षेत्र के तौर पर देखते हुए बीजिंग इस बात से नाराज है। विश्लेषकों का मानना है कि NIS ऐसे समय में समूह में शामिल हुआ, जब नव निर्वाचित राष्ट्रपति यून सुक-यिओल इस सप्ताह कार्यभार संभालने जा रहे हैं। उन्होंने प्योग्यांग के खिलाफ सख्त रवैया रखने का वादा किया है।
अनुमान लगाए जा रहे हैं कि वह पुरानी नीति को छोड़ सकते हैं, जिसमें उत्तर कोरिया के साथ बातचीत के जरिए संबंध सुधारने की बात कही गई थी। हालांकि, यह भी माना जाता है कि दक्षिण कोरिया की लक्ष्य उत्तर कोरिया की तरफ से न्यूक्लियर मिसाइल की धमकियों को खत्म करना है। लेकिन जानकारों का मानना है कि ऐसा करने के लिए सियोल को अमेरिका के साथ साझेदारी नहीं करनी चाहिए और चीन के साथ काम करना चाहिए। चीन और उत्तर कोरिया के बीच साझेदारी को मजबूत माना जाता है।
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