इस्लामी मानदंडों को चुनौती: मलेशिया में दंपतियों के बच्चा न पैदा करने के फैसले से मचा बवाल, छिड़ गई नई बहस

punjabkesari.in Monday, Sep 09, 2024 - 03:38 PM (IST)

International Desk: मलेशिया में दंपतियों ने बच्चा न पैदा करने का फैसला किया है जिसके बाद  नई बहस छिड़ गई है।  मलेशिया में   शादी के बाद बच्चा न करने का बढ़ता चलन, खासकर मलय समुदाय के बीच गहन बहस का कारण बन गया है, जो देश के धार्मिक दृष्टिकोण और सार्वजनिक विमर्श पर इसके गहरे प्रभाव को उजागर करता है। वर्ष 2024 के मध्य में मलेशिया की मलय भाषा में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसी शादियों की प्रवृत्ति पर बहस छिड़ गई, जिसमें दंपति जानबूझकर बच्चा न करने का निर्णय लेते हैं। जब कुछ दंपतियों ने अपनी संतान-मुक्त जीवन शैली के अनुभव साझा किए, तो यह चर्चा और गर्म हो गई। इस बहस में देश के धार्मिक और राजनीतिक नेता भी शामिल हो गए।

 

धार्मिक मामलों के मंत्री मोहम्मद नईम मुख्तार ने इसे इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत बताया और कुरान की आयतों का हवाला देते हुए परिवार के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पैगंबर मुहम्मद ने संतान पैदा करने को प्रोत्साहित किया था, और सिर्फ जिम्मेदारी से बचने के लिए बच्चा न पैदा करना इस्लाम में मकरूह (अप्रिय) माना गया है। वहीं, ‘फेडरल टेरिटरीज मुफ्ती ऑफिस' ने भी स्पष्ट किया कि स्वास्थ्य जोखिमों के आधार पर बच्चा न पैदा करने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन बिना किसी वैध कारण के यह इस्लाम में अनुमत नहीं है। दूसरी ओर, महिला, परिवार और सामुदायिक विकास मंत्री नैंसी शुक्री ने दंपतियों के बच्चा न करने के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने मलेशिया की घटती प्रजनन दर पर संसद में हुई बहस के बाद यह बयान दिया।

 

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार उन दंपतियों की मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है जो बच्चे चाहते हैं, लेकिन बांझपन जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर चल रही इस बहस को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारणों का हवाला देकर बच्चा न करने के पक्षधर, धार्मिक मान्यताओं और विवाह के उद्देश्य के आधार पर इसका विरोध करने वाले, और ‘‘संदर्भवादी’’ जो विशेष परिस्थितियों में बच्चे न पैदा करने को स्वीकारते हैं। धर्म इन चर्चाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासतौर से मलय भाषा के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर, जहां अधिकांश चर्चा धार्मिक मान्यताओं के इर्द-गिर्द घूमती है। स्थानीय विद्वानों और धार्मिक प्राधिकरणों ने बच्चा न करने की प्रवृत्ति को ‘‘गैर-इस्लामिक’’ करार दिया है।

 

उनका मानना है कि इस्लाम में शादी का एक प्रमुख उद्देश्य संतान पैदा करना है, जो जीवन का प्राकृतिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण हिस्सा है। मलेशिया में बढ़ती धार्मिक पुस्तकों की मांग और सोशल मीडिया पर युवा धार्मिक इन्फ्लूएंसर की लोकप्रियता भी यह दर्शाती है कि यहां के समाज में सामाजिक मुद्दों को धार्मिक संदर्भों में देखा जा रहा है। दूसरी ओर, दुनिया भर में घटती जनसंख्या दर के साथ सतत विकास और बढ़ती आर्थिक असमानताओं के संदर्भ में यह सवाल उठ रहा है कि क्या भविष्य में बच्चे पैदा करना एक प्रगतिशील कदम होगा या इसे एक पुराने विचार के रूप में देखा जाएगा।


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Content Writer

Tanuja

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