चीनी हमले से निपटने की तैयारी में जापान, अमेरिका से खरीद सकता है टॉमहॉक क्रूज मिसाइल
punjabkesari.in Saturday, Oct 29, 2022 - 05:13 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः जापान ने चीनी सेना के हमले के खतरे से निपटने के लिए तैयारियां तेज कर दी हैं। जापान अब चीन को जवाब देने के लिए अमेरिकी सेना का ब्रह्मास्त्र टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों पर दांव लगाने जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जापान अपनी प्रतिरोधक क्षमता को तेजी से मजबूत करने के लिए अमेरिका से टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों के खरीदने पर विचार कर रहा है। जापान की कोशिश है कि दुश्मन की मिसाइलों को अपनी जमीन पर गिरने ही न दिया जाए। अमेरिका की ये टॉमहॉक किलर मिसाइलें इराक से लेकर अफगानिस्तान तक में तबाही मचा चुकी हैं।
जापान जिन क्रूज मिसाइलों को खरीदना चाहता है उनकी मारक क्षमता 2500 किलोमीटर तक है। यह क्रूज मिसाइल सतह के बेहद करीब से जाती है जिससे इसे रेडॉर पर पकड़ना आसान नहीं होता है। जापान अपनी लंबी अवधि की सुरक्षा नीति के तहत जवाबी हमले की क्षमता को बढ़ाना चाहता है। जापान ने यह ताजा कदम ऐसे समय पर उठाया है जब उत्तर कोरिया और चीन लगातार घातक मिसाइलों का परीक्षण कर रहे हैं। उधर, इस मिसाइल को हासिल करना खुद जापान में भारी विरोध का सबब बन सकता है।
दरअसल, जापान दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से ही अपने संविधान में ही युद्ध का विरोध करता है और केवल आत्मरक्षा के लिए ही सेना रखता है। जापान के एक रक्षा अधिकारी ने स्वीकार किया कि जापान इस मिसाइल को खरीदने के बारे में विचार कर रहा है लेकिन यह सबकुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या अमेरिका उसे बेचेगा या नहीं। चीन और उत्तर कोरिया से निपटने के लिए जापान खुद भी अपनी मिसाइलें बना रहा है जो दुश्मन के युद्धपोतों को काफी दूर से ही तबाह करने में सक्षम होंगी।
जापान अपनी मिसाइल को जमीन, हवा और युद्धपोत तीनों ही तरीकों से दागने में सक्षम होगा। यही वजह है कि जापान अब अपनी टाइप-12 मिसाइल की रेंज को बढ़ाने पर विचार कर रहा है। यह मिसाइल सतह से युद्धपोत पर हमला करने में सक्षम है। जापान की ये स्वदेशी मिसाइलें साल 2026 से पहले सेवा में आना संभव नहीं है। ताइवान पर चीन के हमले के खतरे ने जापान को और ज्यादा टेंशन में डाल दिया है। यही वजह है कि तोक्यो अमेरिकी क्रूज मिसाइल लेना चाहता है। अमेरिका ने इस क्रूज मिसाइल का सबसे पहले इस्तेमाल साल 1991 में खाड़ी युद्ध में किया था। साल 2017 में अमेरिकी सेना ने सीरिया में भी इसका इस्तेमाल किया है।