मोदी ने वो कर दिखाया जो अटल, मनमोहन सिंह भी न कर पाए

punjabkesari.in Monday, May 23, 2016 - 05:39 PM (IST)

तेहरान : भारत और ईरान के बीच सोमवार को जो ऐतिहासिक चाबहार समझौता हुआ वे 2013 से रुका पड़ा था। इस बारे में केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी बताते हैं कि साल 2003 में जब देश अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तभी चाबहार बंदरगाह बनाने के लिए आरंभिक समझौता किया गया। उसके बाद इस समझौते को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। समझौता जहां था अगले कुछ साल भी वहीं पर रहा। वाजपेयी सरकार के बाद देश में दो बार कांग्रेस सरकार भी आई और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने लेकिन समझौता जस का तस ही रहा।


गडकरी ने बताया कि यह समझौता एक ऐतिहासिक समझौता है। भारत 2009 में निर्मित जारंज-देलारम सड़क अफगानिस्तान के राजमार्ग तक पहुंच प्रदान कर सकता है, जो अफगानिस्तान के चार प्रमुख शहरों - हेरात, कंधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक पहुंच प्रदान करेगा।
 
चाबहार पोर्ट समझौते के ये हैं फायदे
1. पाकिस्तान को झटका देते हुए भारत को ईरान में पैर जमाने में मदद मिलेगी। 
2. रूस, यूरोप और अफगानिस्तान में भारत व्यापारिक तौर पर मजबूत होगा।
3. एल्युमीनियम स्मेल्टर से लेकर यूरिया संयंत्र तक के लिए अरबों डॉलर का निवेश होगा।
4. भारत 500 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा। यह बंदरगाह दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है।
5. कांडला एवं चाबहार बंदरगाह के बीच दूरी भी कुछ खास नहीं है।
6. इतनी दूरी भी नहीं है जितनी नयी दिल्ली से मुंबई के बीच की है।
7. कम समझौते में भारत वस्तुएं ईरान तक तेजी से पहुंचा पाएगा। 
8. रेल एवं सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान तक ले जाने में मदद मिलेगी। 
9. यह अनुबंध दस साल के लिए है। ग्वादार बंदरगाह से लगभग 100 किलोमीटर दूर है चाबहार
10. पहले चरण को डेढ़ साल में पूरा करना होगा।
11. भारतीय संयुक्त उद्यम कंपनियां बंदरगाह में 8.52 करोड़ डॉलर से अधिक का निवेश करेंगी। 

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