सीरिया में बगावत: असद समर्थकों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसा में 1000 से अधिक लोगों की गई जान
punjabkesari.in Sunday, Mar 09, 2025 - 11:43 AM (IST)

International Desk: सीरिया के अपदस्थ राष्ट्रपति बशर अल-असद के वफादारों और सुरक्षा बलों के बीच दो दिन तक जारी संघर्ष और उसके बाद प्रतिशोधी हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 1,000 से अधिक हो गई है, जिनमें लगभग 750 आम नागरिक शामिल हैं। मानवाधिकार संगठन ने शनिवार को यह जानकारी दी। सीरिया में 14 साल पहले शुरू हुए संघर्ष के बाद से यह हिंसा की सबसे घातक घटनाओं में से एक है। ब्रिटेन के मानवाधिकार संगठन ‘सीरियन ऑब्ज़र्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स' ने कहा कि 745 नागरिकों के अलावा, सरकारी सुरक्षा बलों के 125 सदस्य और अपदस्थ राष्ट्रपति बशर अल-असद से संबद्ध सशस्त्र समूहों के 148 चरमपंथी भी मारे गए।
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मानवाधिकार संगठन ने यह भी बताया कि तटीय शहर लताकिया के आसपास के बड़े इलाकों में बिजली और पेयजल आपूर्ति बाधित हो गई है तथा कई बेकरी बंद हो गई हैं। सीरिया में तीन महीने पहले असद को अपदस्थ करके सत्ता पर विद्रोहियों के कब्जा करने के तीन महीने बाद बृहस्पतिवार को शुरू हुई यह झड़प दमिश्क की नयी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है। सरकार ने कहा कि वे असद के समर्थकों द्वारा किए गए हमलों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। उन्होंने बड़े पैमाने पर हुई इस हिंसा के लिए ‘‘अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा की गई कार्रवाइयों'' को जिम्मेदार ठहराया। सीरिया में हालिया झड़पें तब शुरू हुईं, जब सुरक्षा बलों ने बृहस्पतिवार को तटीय शहर जबलेह के पास एक वांछित व्यक्ति को हिरासत में लेने की कोशिश की।
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इस दौरान असद के वफादारों ने उन पर घात लगाकर हमला कर दिया। सीरिया की नयी सरकार के प्रति वफादार सुन्नी मुस्लिम बंदूकधारियों ने शुक्रवार को असद के अल्पसंख्यक अलावी समुदाय के लोगों की हत्याएं शुरू की थीं, जिसके बाद से दोनों के बीच झड़पें जारी हैं। लेकिन यह हयात तहरीर अल-शाम के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि इसी धड़े के नेतृत्व में विद्रोही समूहों ने असद के शासन का तख्तापलट कर दिया था। अलावी गांवों और कस्बों के निवासियों ने समाचार एजेंसी ‘एसोसिएटेड प्रेस' को बताया कि बंदूकधारियों ने अलावी समुदाय के अधिकांश पुरुषों को सड़कों पर या उनके घरों के दरवाजे पर ही गोली मारी। हिंसा से सबसे अधिक प्रभावित कस्बों में से एक बनियास के निवासियों ने कहा कि शव सड़कों पर बिखरे पड़े थे या घरों और इमारतों की छतों पर पड़े थे और उन्हें उठाकर दफनाने के लिए कोई नहीं था।