अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा चीन के लिए अवसर या चुनौती !
punjabkesari.in Tuesday, Jul 20, 2021 - 04:25 PM (IST)
इंटरनेशनल डेस्कः अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने चीन को अवसर और चुनौती दोनों के साथ प्रस्तुत किया है। अफगानिस्तान में 20 साल की उपस्थिति के बाद हाल ही में अमेरिकी सेना की वापसी ने तालिबान के लिए अफगानिस्तान के विशाल क्षेत्रों पर कब्जा करने का मार्ग प्रशस्त किया है। अंतिम गणना में इसके 400 जिलों में से लगभग 223 पर तालिबान का कब्जा हो चुका और यह अंततः काबुल सरकार के लिए खतरे की घंटी है । चीन के लिए ये अवसर इसलिए है क्योंकि चीन आंशिक रूप से पश्चिम द्वारा खाली की गई शक्ति को भर सकता है और चुनौती इसलिए क्योंकि तालिबान एक आतंकवादी संगठन है जिसका इस्लामिक आतंकवादी समूहों से ऐतिहासिक संबंध है।
चीन का मानना है कि अगर अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व बढ़ा तो इसका सीधा असर उइगर मुस्लिमों के आंदोलन पर पड़ेगा। चीन को डर है कि उइगर मुस्लिमों को लेकर आतंकी संगठन चीन पर दबाव बना सकते हैं। दूसरे, अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभुत्व का असर चीनी निवेश पर पड़ेगा। अमेरिकी सैनिकों की वापसी को लेकर राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि हम राष्ट्र निर्माण के लिए अफगानिस्तान नहीं गए थे। यह केवल अफगान लोगों का अधिकार और जिम्मेदारी है कि वे अपना भविष्य तय करें और वे अपने देश को कैसे चलाना चाहते हैं। बाइडेन के इस बयान का सच यह है कि अमेरिका अपनी सैन्य शक्ति के बावजूद युद्धग्रस्त देश को स्थिर करने में विफल रहा।
इस बीच हाल में तालिबान ने कहा है कि अफगानिस्तान चीन को दोस्त मानता है। तालिबान ने कहा है कि वह चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देगा। इसके अलावा चीन के निवेश की सुरक्षा का भी वादा किया है। तालिबान का यह बयान ऐसे वक्त आया जब अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते प्रभाव से चीन चिंतित है। तालिबान के इस बयान से चीन ने जरूर राहत की सांस ली होगी। अमेरिकी सेना के हटने के बाद से तालिबान ने अफगानिस्तान के आधे से अधिक हिस्से पर कब्जा कर चुका है। अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान सैनिकों के बीच अभी भी सत्ता संघर्ष की जंग जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की बड़ी चिंता दोनों देशों की मिलने वाली एक लंबी सीमा रेखा है।
चीन की शिनजियांग प्रांत की आठ किलोमीटर सीमा अफगानिस्तान से जुड़ी हुई है। बीजिंग को यह भय सता रहा है कि तालिबान के शासन में अफगानिस्तान ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट का केंद्र बन सकता है। खास बात यह है कि इस अलगाववादी संगठन का संबंध खूंखार आतंकवादी संगठन अल-कायदा से भी है। दूसरे, चीन का शिनजियांग प्रांत संसाधनों से भरपूर है। चीन इस बात को लेकर भय सता रहा है कि शिनजियांग प्रांत में आइएस का प्रभाव बढ़ा तो दिक्कत हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार अगर अफगानिस्तान में सुरक्षा खतरा बना रहा तो इसका असर पड़ोसी देशों पर भी पड़ेगा। आतंकियों के मध्य एशियाई देशों और और पाकिस्तान के माध्यम से चीन में एंट्री की आशंका है।अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों ने पिछले वर्षों में मध्य एशिया में कुछ आतंकवादी गुटों को पीछे हटने को मजबूर किया है। कई गुटों ने सीरिया का रुख कर दिया है, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के साथ, यह देखने की जरूरत है कि क्या तालिबान समर्थित अल-कायदा फिर से खड़ा हो रहा है।