चीन का तालिबान के हक में फैसला 'सदाबहार दोस्त' पाकिस्तान के मुंह पर बड़ा तमाचा
punjabkesari.in Thursday, Feb 08, 2024 - 12:31 PM (IST)
इंटरनेशनल डेस्कः हाल ही में अफगानिस्तान के पूर्णकालिक राजदूत को स्वीकार करने का चीन का निर्णय बीजिंग के 'सदाबहार सहयोगी' पाकिस्तान के लिए एक बड़ा तमाचा है। चीन का यह कदम ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान तालिबान शासन को आतंकवादी समूह, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को रोकने में मदद करने के लिए मनाने में विफल रहा है। TTP ने नवंबर 2022 से पाकिस्तानी लोगों को भारी नुकसान पहुंचाया है। अधिक अपमानजनक तथ्य यह है कि चीन का यह कदम जनरल असीम मुनीर द्वारा तालिबान शासन को सीधी धमकी जारी करने के कुछ दिनों के भीतर आया है।
उन्होंने कहा कि एक पाकिस्तान की जान उन्हें पूरे अफगानिस्तान से ज्यादा प्यारी है। चीन के फैसले से इस्लामाबाद और रावलपिंडी में कई लोगों के चेहरे लाल हो गए। जाहिर तौर पर इस्लामाबाद को जो बात नागवार गुजरी वह यह थी कि चीन ने उन्हें विश्वास में लिए बिना इतना बड़ा फैसला ले लिया। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले महीने अफगानिस्तान के पूर्णकालिक राजदूत को स्वीकार किया था। यह कार्रवाई पाकिस्तान को नागवार गुजरी। पाकिस्तानी यह स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि काबुल के साथ कामकाजी संबंध स्थापित करने में पाकिस्तान की स्पष्ट विफलता के कारण चीन ने तालिबान शासन से हाथ मिलाने का फैसला किया है।
बीजिंग का यह एकतरफा कदम चीन सहित क्षेत्रीय देशों द्वारा यह निर्णय लेने के बाद आया है कि तालिबान शासन को मान्यता देने का निर्णय सर्वसम्मति से और सामूहिक रूप से लिया जाएगा। लेकिन औपचारिक रूप से एक राजदूत को स्वीकार करके, चीन ने वास्तव में काबुल में शासन को मान्यता दे दी है। अफगान तालिबान शासन और पाकिस्तान, जो एक समय करीबी सहयोगी थे, के बीच संबंधों में पिछले दो वर्षों में खासकर तालिबान द्वारा एक आतंकवादी समूह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को दिए जाने वाले संरक्षण को लेकर कई रुकावटें आई हैं।
बता दें कि नवंबर 2022 से टीटीपी द्वारा नियमित आतंकवादी हमलों में एक सौ से अधिक सैनिक और अधिकारी मारे गए हैं। कई राजनयिक और सैन्य सुलह कदमों के बावजूद तालिबान ने अब तक टीटीपी को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। चीन का अभूतपूर्व कदम कुछ प्रमुख अंतर्निहित कारणों से जरूरी है। सबसे महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में अधिक प्रभाव डालने का उसका स्पष्ट कदम है, विशेष रूप से पाकिस्तान और अफगानिस्तान की मदद से महाद्वीप में अपनी पकड़ मजबूत करने के नए कदम में। अमेरिका ने काबुल में अपने वाणिज्य दूतावास को फिर से खोलने की इच्छा व्यक्त की है। चीन अफगानिस्तान में ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) की मौजूदगी और आवाजाही से भी चिंतित है।