भारत के UP राज्य के शख्स के कारण हुई अमेरिका-ईरान के बीच कट्टर दुश्मनी

punjabkesari.in Wednesday, Jan 08, 2020 - 10:44 AM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः अमेरिकी हमले में ईरान के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद ईरान बदले की आग में सुलग रहा है। दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात के चलते पूरी दुनिया टेंशन में है। अमेरिका युद्ध की तैयारियां तेज कर रहा था कि ईराक ने इराक स्थित अमेरिकी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हुए दर्जनों मिसाइलें दाग दी हैं और इसे ईरान की तरफ से युद्ध की शुरुआत माना जा रहा है। मध्‍य पूर्व में अमेरिका की मौजूदगी को लेकर  विदेश मामलों के विशेषज्ञ का मानना है कि अमेरिका की यहां पर मौजूदगी केवल अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए ही है। उसके यह निजी हित तभी पूरे हो सकते हैं जब इन देशों में अमेरिकी परस्‍त हुकूमत काबिज हो।

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ईरान में पंसद की सरकार चाहता है अमेरिका

इराक में सद्दाम हुसैन के पतन के बाद अमेरिका की सरपरस्‍ती में उसकी पसंद की सरकार बनी थी, लेकिन अन्‍य जगहों पर ऐसा नहीं हो सका। जानकारों की राय में अमेरिका ईरान में भी अपनी ही पंसद की सरकार चाहता है, जो उसके हितों के लिए काम करे। लेकिन, ईरान के सर्वोच्‍च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई की मौजूदगी में यह संभव नहीं है। बता दें कि कभी ईरान में भी अमेरिका की पसंदीदा सरकार हुआ करती थी। हैरत की बात यह है कि अमेरिका- ईरान के बीच दुश्मनी की वजह एक भारतीय है। इस हुकूमत को एक भारतीय ख्‍स ने ही चुनौती दी थी जो बाद में देश का सर्वोच्‍च नेता भी बना था। इनका नाम था अयातुल्‍लाह रुहोल्लाह खामेनेई अयातुल्‍लाह ।

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 भारत के इस राज्य के रहने वाले थे खामेनेई  
खामेनेई के दादा सैय्यद अहमद मसूवी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के रहने वाले थे। 1830 के दशक में वह अवध के नवाब के साथ धार्मिक यात्रा पर इराक और फिर ईरान गए थे। लेकिन इसके बाद यहां से उनके लौटने का ही मन नहीं किया और वो वहां के खामेनेई गांव में बस गए। डाइचे वेले के मुताबिक उनके बाद की पीढ़ी ने खामेनेई को अपने सरनेम की तरह इस्‍तेमाल किया और आज ये नाम ईरान के सबसे ताकतवर शख्‍स के साथ जुड़ा है। ईरान की क्रांति के सफल होने से पहले तक ईरान के शाह की हुकूमत में खामेनेई को भारतीय मुल्‍ला और एजेंट तक भी कहा जाता था। अयातुल्‍लाह को गजल सुनने का शौक था। एक लेख में इस शौक को केलर अयातुल्‍लाह को काफी बुरा भला कहा गया था। लेकिन शाह का ये दांव उलटा साबित हुआ और जनता उनके ही खिलाफ सड़कों पर उतर आई थी।

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1988 में और बढ़ गई दुश्‍मनी 
1980 में इराक ने ईरान पर हमला किया तो उसका साथ रूस अमेरिका और ब्रिटेन ने दिया। लेकिन आठ साल तक चले इस युद्ध में अमेरिका को कुछ हासिल नहीं हो सका। आखिरकार अमेरिका को मजबूरन समझौता करना पड़ा। इसके बाद यह दुश्‍मनी तब और बढ़ गई जब 1988 में ईरान के एक यात्री विमान को अमेरिका ने मार गिराया था। इसमें दस भारतीय समेत कुल 290 यात्री सवार थे। इस हत्‍या के खिलाफ ईरान इंटरनेशनल कोर्ट तक गया था। खामेनेई ने इसके बाद देश को नई ताकत देने के लिए परमाणु कार्यक्रम शुरू किया। उनके ही कार्यकाल में देश के मौजूदा सर्वोच्‍च नेता अली खमनेई राष्‍ट्रपति थे। 1989 में खामेनेई के निधन के बाद अली को देश का सवोच्‍च नेता बनाया गया। वह 1981 से 1989 तक देश के राष्ट्रपति रहे थे।


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Tanuja

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