क्या अमेरिका दुनिया का ‘सुपरकॉप’ है? जब चाहे जिस पर चाहे कर दे हमला, क्या कोई नहीं रोक सकता?
punjabkesari.in Monday, Jun 23, 2025 - 04:36 PM (IST)

नेशनल डेस्क: 22 जून 2025 को दुनिया की राजनीति में एक बड़ा मोड़ आया, जब अमेरिका ने ईरान के तीन बड़े परमाणु ठिकानों – फोर्दो, नतांज और इस्फहान – पर हमला कर दिया। यह हमला ऐसे समय में हुआ, जब ईरान और इजरायल के बीच तनाव पहले से ही चरम पर था। अमेरिका के इस दखल के बाद अब यह सवाल चर्चा में है कि क्या अमेरिका को जब चाहे, किसी भी देश पर हमला करने का ‘अधिकार’ है?
अमेरिका की ताकत: सिर्फ हथियार ही नहीं, कूटनीति में भी नंबर वन
अमेरिका को दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना जाता है। उसके पास दुनिया के सबसे एडवांस हथियार, स्टेल्थ बॉम्बर्स, न्यूक्लियर सबमरीन और अत्याधुनिक फाइटर जेट्स हैं। उसका डिफेंस बजट इतना बड़ा है कि कई देशों की पूरी जीडीपी उससे कम है। अमेरिका की नौसेना, वायुसेना और सेना तीनों क्षेत्र में सबसे ताकतवर हैं। लेकिन क्या सिर्फ ताकत होने का मतलब है कि वो किसी भी देश पर हमला कर सकता है? जवाब इतना आसान नहीं।
अंतरराष्ट्रीय नियमों का क्या होता है?
अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र (UN) का चार्टर स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी भी देश पर हमला करना तभी वैध है जब:
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आत्मरक्षा के लिए किया गया हो
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यूएन सुरक्षा परिषद से मंजूरी मिली हो
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उस देश ने सीधा हमला किया हो
ईरान पर अमेरिकी हमला इन मानकों पर कितना खरा उतरता है, यह बहस का विषय है। ईरान का कहना है कि यह हमला अंतरराष्ट्रीय नियमों का खुला उल्लंघन है।
अमेरिका का दावा: युद्ध नहीं, सिर्फ ‘नुक्लियर खतरे’ को खत्म करना
हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बयान दिया कि अमेरिका युद्ध नहीं चाहता, बल्कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना चाहता है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस इस हमले से सहमत नहीं थे, लेकिन राष्ट्रपति ने एकतरफा फैसला लिया।
इतिहास गवाह है: अमेरिका ने पहले भी किया है कई बार हस्तक्षेप
अमेरिका पहले भी कई देशों में इस तरह सैन्य कार्रवाई कर चुका है। कुछ प्रमुख उदाहरण:
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जापान (1945): हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया गया
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कोरिया: दक्षिण कोरिया की रक्षा के नाम पर युद्ध में शामिल हुआ
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वियतनाम: कम्युनिज्म रोकने के नाम पर हमला किया, पर असफल रहा
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इराक: 'Weapons of Mass Destruction' का आरोप लगाकर हमला
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अफगानिस्तान: 9/11 के बाद आतंक के खिलाफ युद्ध
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सीरिया और लीबिया: तानाशाही के खिलाफ कार्रवाई
इन सभी हमलों का उद्देश्य कभी आतंकवाद तो कभी लोकतंत्र की रक्षा बताया गया, लेकिन कई बार इन कदमों पर अमेरिका की आलोचना भी हुई।
क्या कोई रोक सकता है अमेरिका को?
सैद्धांतिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को ये अधिकार है कि वह किसी देश के हमले को रोके, लेकिन अमेरिका स्वयं इस परिषद का स्थायी सदस्य है और उसके पास वीटो पावर है। यानी कोई भी प्रस्ताव उसके खिलाफ पास नहीं हो सकता, अगर वह ना कह दे। इसके अलावा, अमेरिका की कूटनीतिक और आर्थिक ताकत इतनी अधिक है कि बहुत कम देश उसके खिलाफ खुलकर बोल पाते हैं।
दो ध्रुवीय दुनिया: अमेरिका के विरोध में कौन?
आज की दुनिया दो गुटों में बंटी है:
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एक ओर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य पश्चिमी देश
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दूसरी ओर रूस, चीन, ईरान और उत्तर कोरिया
इन देशों के बीच चल रही तनातनी और आपसी समर्थन प्रणाली ही अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन बनाए रखती है। लेकिन इस संतुलन के बावजूद, अमेरिका कई बार अपने निर्णय अकेले ही लेता आया है।