Inspector Zende Review: एक थ्रिलर जो थकाती नहीं, सोचने पर मजबूर करती है
punjabkesari.in Friday, Sep 05, 2025 - 05:02 PM (IST)

फिल्म: इंस्पेक्टर ज़ेंडे (Inspector Zende)
निर्देशक: चिन्मय मांडलेकर (Chinmay Mandlekar)
कास्ट: मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee), जिम सर्भ (Jim Sarbh), गिरीजा ओक (Girija Oak), सचिन खेडेकर (Sachin Khedekar), और भालचंद्र कदम (Bhalchandra Kadam)
ओटीटी प्लेटफार्म: नेटफ्लिक्स
रेटिंग्स: 3.5 स्टार्स
‘Inspector Zende’ केवल एक क्राइम थ्रिलर नहीं है, बल्कि यह समाज, न्याय व्यवस्था और इंसानी मानसिकता पर गहरे सवाल उठाने वाली फिल्म है। 1980 के दशक की पृष्ठभूमि में बनी यह कहानी उस दौर की सच्चाई सामने लाती है जब पुलिस के पास सीमित संसाधन थे और अपराधी पकड़ने के लिए केवल दिमाग, धैर्य और अनुभव पर निर्भर रहना पड़ता था।
कहानी
फिल्म की कहानी इंस्पेक्टर ज़ेंडे के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपराध की पेचीदा दुनिया से जूझते हुए न केवल अपराधियों को पकड़ने की चुनौती लेता है, बल्कि व्यवस्था की कमजोरियों और समाज की मानसिकता से भी टकराता है। इस दौर का यथार्थ निर्देशक ने बारीकी से उकेरा है। जहां आधुनिक तकनीक की कमी के बावजूद पुलिस अपराध की गुत्थियां सुलझाने में कामयाब होती थी।
अभिनय
मनोज बाजपेयी फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं। उनका अभिनय साधारण होकर भी बेहद गहरा है। उनकी खामोशी, आंखों का भाव और आंतरिक संघर्ष किरदार को वास्तविक और असरदार बनाता है। जिम सर्भ बतौर खलनायक कार्ल भोजराज फिल्म में सस्पेंस और तनाव का केंद्र बने रहते हैं। उनकी मौजूदगी हर सीन में खतरनाक और दिलचस्प दोनों लगती है। सपोर्टिंग कलाकारों में गिरीजा ओक और सचिन खेडेकर अपने गंभीर और विश्वसनीय अभिनय से फिल्म को मजबूती देते हैं, जबकि भालचंद्र कदम हल्के-फुल्के हास्य से कहानी में संतुलन बनाए रखते हैं।
निर्देशन
निर्देशक ने 1980 के दशक का माहौल बेहद यथार्थवादी अंदाज़ में पेश किया है। सिनेमैटोग्राफी उस दौर की सड़कों, थानों और समाज की झलक को सटीक ढंग से दिखाती है। फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट इसका गंभीर ट्रीटमेंट और किरदारों की गहराई है। सस्पेंस और कहानी की बारीकियां दर्शक को लगातार बांधे रखती हैं। हालांकि धीमी गति कभी-कभी दर्शकों को भारी लग सकती है और सीमित लोकेशन्स की वजह से एकरसता महसूस होती है।
कुल मिलाकर, Inspector Zende उन दर्शकों के लिए आदर्श फिल्म है जो सिर्फ थ्रिल नहीं बल्कि किरदारों की जटिलताओं और मानसिक तनाव को समझना पसंद करते हैं। यह फिल्म क्राइम थ्रिलर के साथ-साथ उस दौर की सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सच्चाइयों को भी उजागर करती है।