ममता चाइल्ड फैक्ट्री: सरोगेसी पर आधारित संवेदनशील और मनोरंजक ग्रामीण ड्रामा
punjabkesari.in Thursday, Dec 11, 2025 - 03:52 PM (IST)
फिल्म: ममता चाइल्ड फ़ैक्ट्री (Mamta Child Factory)
कलाकार: प्रथमेश परब (Prathamesh Parab), अंकिता लांडे (Ankita Lande), पृथ्वीक प्रताप (Prithvik Pratap) और गणेश यादव (Ganesh Yadav)
निर्देशक: मोहसिन खान (Mohsin Khan)
प्लेटफ़ॉर्म: अल्ट्रा प्ले ओटीटी
रेटिंग: 3
Mamta Child Factory: फ़िल्म ममता चाइल्ड फ़ैक्ट्री अपने सेंसर बोर्ड से हुए टकराव के लिए मीडिया की सुर्ख़ियों में रही थी । लंबे विवाद और कट्स की मांग के बाद निर्माता ने थिएटर रिलीज़ छोड़कर सीधे ओटीटी पर रिलीज करने का निर्णय लिया । निर्देशक मोहसिन खान की यह फिल्म सरोगेसी को सामाजिक ड्रामा, हल्के-फुल्के हास्य और भावनात्मक पलों के साथ बेहद सहज और संतुलित तरीके से प्रस्तुत करती है।
कहानी
कहानी महाराष्ट्र के एक छोटे कस्बे में शुरू होती है, जहां भाऊ (प्रथमेश परब) और चोच्या (पृथ्वीक प्रताप) रियल एस्टेट का छोटा-मोटा काम करते हैं और बड़े सपने देखते हैं। उनकी ज़िंदगी तब करवट लेती है जब शहर से डॉक्टर अमृता देशमुख (अंकिता लांडे) गांव में एक फर्टिलिटी सेंटर खोलने आती हैं। अमृता के आधुनिक विचारों की टक्कर गांव की पुरानी सोच, सामाजिक झिझक और महिलाओं के उन डर से होती है, जिन्हें सरोगेसी का मतलब तक ठीक से समझ नहीं आता। यहीं फिल्म अपना भावनात्मक आधार पाती है—ग्रामीण महिलाएं आर्थिक मजबूरी में सरोगेसी को मौका मानती हैं, लेकिन समाज की बातें और परिवार का दबाव उन्हें कदम बढ़ाने से रोकता है।
इसी बीच, एमएलए संजय तात्या भोसले (गणेश यादव) अपनी निजी समस्या छिपाते हुए अपनी पत्नी के लिए गुप्त रूप से सरोगेसी का सहारा लेते हैं, और यहीं से फिल्म का ड्रामा तेज़ हो जाता है। राजनीतिक दबाव, गांव की अफवाहें और नैतिक सवाल कहानी को कई परतों में आगे बढ़ाते हैं। घटनाओं के लगातार आते ट्विस्ट फिल्म को रोचक बनाए रखते हैं और सरोगेसी के मानवीय पहलुओं के साथ ही पारिवारिक रिश्तों के इमोशंस को भी दर्शकों तक पहुचाती है.
अभिनय
मराठी फ़िल्मों के सुपर स्टार प्रथमेश परब फिल्म में केंद्र में है उनका भाऊ मस्तीभरा भी है, मासूम भी, और भावुक भी। कहानी जैसे-जैसे गंभीर होती है, उनका अभिनय भी उतना ही प्रभावी हो जाता है। अंकिता लांडे डॉक्टर अमृता के किरदार में गरिमा, संवेदनशीलता और विश्वास लेकर आती हैं। सरोगेसी जैसे विषय की नैतिक और भावनात्मक जटिलताओं को वह बेहद प्राकृतिक ढंग से निभाती हैं। पृथ्वीक प्रताप चोच्या के रोल में जोरदार हास्य का संतुलन बनाए रखते हैं और प्रथमेश के साथ उनकी केमिस्ट्री फिल्म को एंटरटेनिंग बनाए रखती है। गणेश यादव एमएलए के दबाव और निजी संघर्षों को बड़े सहज अभिनय से सामने रखते हैं। सुजाता मोगल और विजय पटवर्धन जैसे कलाकार गांव के किरदारों को स्वाभाविक रूप अपने अभिनय से से पर्दे पर लेकर आते हैं।
लेखन और निर्देशन
मोहसिन खान की सबसे बड़ी ताकत उसका फ़िल्म के विषय के प्रति संतुलन है। वह सरोगेसी को न तो ग्लैमराइज करते हैं, न ही उपदेशात्मक बनाते हैं। फिल्म का पहला हिस्सा हल्का, मजेदार और गांव की खुशबू से भरा है, जबकि दूसरा हिस्सा सामाजिक विवाद, भावनात्मक दबाव और ड्रामा से भरा है। फ़िल्में में नोरंजन और इमोशंस का बैलेंस है। ममता चाइल्ड फैक्ट्री सरोगेसी, सामाजिक मुद्दों, गांव की सादगी और भावनात्मक रिश्तों को बेहद संतुलित तरीके से जोड़ती है साथ ही सामाजिक और फैमिली ड्रामा इसे मनोरंजक बनाता है।
