PIX: मंदिर में सोने से भरती है सुनी गोद, अद्भुत तरीके से पता लगता है बेटा होगा या बेटी
punjabkesari.in Tuesday, Jul 05, 2016 - 09:45 AM (IST)

देवभूमि हिमाचल के मंड़ी जिले के लड़-भड़ोल तहसील के सिमस गांव में एक मंदिर है जिसे सिमसा माता के नाम से जाना जाता है। बैजनाथ से मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर अौर जोगिन्दर नगर से 50 किलोमीटर है। इस मंदिर की विशेष, बात यह है कि यहां पर यदि नि:संतान स्त्रियां फर्श पर सोएं तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। नवरात्रों में इस मंदिर में बहुत दूर-दूर से जैसे पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि राज्यों से नि:संतान स्त्रियां आती हैं।
यह मंदिर दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। सिमसा माता को संतान-दात्री के नाम से भी पुकारा जाता है। प्रत्येक वर्ष यहां दंपति संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर आते हैं। नवरात्रों में यहां विशेष समारोह होता है। स्थानीय भाषा में इसे सलिन्दरा कहते हैं। सलिन्दरा अर्थात स्वप्न आना।
नवरात्रों के अवसर पर स्त्रियां मंदिर में आकर दिन-रात यहां के फर्श पर सोती हैं। माना जाता है कि जो स्त्रियां सच्चे मन अौर श्रद्धा से इस मंदिर में आती हैं, उन्हें स्वप्न में मां सिमसा मानव या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं।
माना जाता है कि सपने में स्त्रियों द्वारा स्वयं को कंद-मूल या फल मिलते देखने पर उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। मां सिमसा सपने में पुत्र या पुत्री होने का भी संकेत दे देती हैं। सपने में स्त्री को अमरुद मिले तो उसे पुत्र प्राप्ति होती है। यदि स्वप्न में भिंडी मिले तो पुत्री होती है। इसके अतिरिक्त धातु, लकड़ी या पत्थर से निर्मित वस्तु मिले तो उसे संतान प्राप्ति नहीं होती है।
कहा जाता है कि जिस स्त्री को नि:संतान बने रहने का सपना आए फिर भी वह वहां से अपना बिस्तर न हटाए तो उसके शरीर में खारिश होती है अौर लाल दाग उभर आते हैं। फिर उसे विवश हो वहां से जाना पड़ता है। संतान होने के पश्चात लोग अपने पारिवारिक सदस्यों अौर सगे-संबंधियों के साथ माता रानी का धन्यवाद करने आते हैं।
मंदिर की एक विशेष बात यह है कि इसके समीप एक शिला है, जो बहुत प्रसिद्ध है। यह शिला दोनों हाथों से हिलाने पर भी नहीं हिलती परंतु हाथ की छोटी ऊंगली से हिलाने पर यह हिल जाती है। मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर दूर खूबसूरत स्थान है, जिसे कुड्ड के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि इस जगह पर भगवान शिव ने कुछ समय तपस्या की थी।