Photos: भगवान श‌िव की कचहरी में ल‌िखवाई गई इच्छा पूर्ण करते हैं आत्मल‌‌िंग

punjabkesari.in Thursday, Aug 13, 2015 - 01:13 PM (IST)

देवघर यात्रा का आरंभ सुल्तानगंज से होता है। भगवान श‌िव यहां कचहरी लगाते हैं जिसे अजगैबीनाथ कहा जाता है। भगवान शिव का यह मंदिर गंगा नदी में अवस्थित है। कहते हैं इस मंद‌िर का संबंध उस धनुष से है ज‌िसे विध्वंस करके श्रीराम ने देवी सीता से व‌िवाह रचाया था। सुल्तानगंज से जब कांवड़‌िया जल भर कर चलने लगते हैं तो मान्यता है अजगैबीनाथ ने भक्त की इच्छा ल‌िख ली है अब देवघर में बाबा बैजनाथ पूर्ण करेंगे।

कहते हैं द्वादश ज्योत‌िर्ल‌िंगों में से इस लिंग को आत्मल‌‌िंग अथवा कामनाल‌िंग के नाम से संबोधित किया जाता है क्योंकि यहां पर हर मन्न्त पूरी होती है। बाबा की इस नगरी में वैसे तो साल भर मेले जैसा माहौल बना रहता है पर श्रावण व चैत्र के महीने में यह नगरी शिव भक्तों के तप, दर्शन व धार्मिक जयकारों से शिवमय हो जाती है। सावन माह में शिवभक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है। 
 
श्रावण मास के तीसरे सोमवार को यहां भूतनाथ का मेला लगता है एवं दूर दराज के तमाम जगहों से भक्त आकर यहां "भूतनाथ की हू" का जयघोष करते हुए पूजा-अर्चना करते हैं और शिवभक्त हरिद्वार, फर्रुखाबाद, इलाहाबाद आदि जगहों से गंगाजल भरकर पैदल यात्रा करते हुए गोला के भोला को कांवर चढ़ाते हैं।  
 
त्रिनेत्रधारी भगवान शिव के प्रांगण में तीन द‌िशाओं में तीन द्वार है। उत्तर द्वार, पूर्वी द्वार और पश्च‌िमी द्वार। इनमें से उत्तरी द्वार मुख्य द्वार है क्योंकि यहां एक कुंआ हैं कहते हैं उस कुएं के जल से भगवान श‌िव का अभ‌िषेक करने से गंगाजल से अभ‌िषेक करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। यहां रावण की लघुशंका से बना भी एक तालाब है। जहां लोग कपड़े धोते हैं। साथ ही एक और तालाब है जिसे शिव गंगा तालाब कहा जाता है। इसमें स्नान करके ही भक्त भोले बाबा के दर्शन करने जाते हैं।
 
मथुरा की भांति यहां म‌िलने वाले पेड़े भी बहुत प्रसिद्ध हैं। कहते हैं की देवघर में देवी सती का अंत‌िम संस्कार हुआ था इसलिए इसे भी 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। देवघर की यात्रा का अंत‌िम पड़ाव है वासुकीनाथ। यहीं पर आ कर देवघर की यात्रा पूर्ण होती है और भक्तों को यात्रा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

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