धृतराष्ट्र की इस संतान को बचाने के लिए युधिष्ठिर ने अपनाई थी ये रणनीति

punjabkesari.in Saturday, Sep 12, 2020 - 03:44 PM (IST)

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जिस तरह सनातन धर्म में रामायण ग्रंथ को बहुत ही पावन ग्रंथ माना जाता, ठीक उसी तरह महाभारत को समस्त प्रमुथ ग्रंथों में से एक कहलाता है। जहां रामायण में श्री हरि विष्णु के त्रेता युग में लिए अवतार श्री राम के बारे में वर्णन मिलता है तो वहीं महाभारत काल द्वापर युग का है। जिसमें भगवान नारायण ने श्री कृष्ण का अवतार लिया था। जब भी इन दोनों के बारे में बात होती है तो लगभग लोगों द्वारा त्रेता युग से रावन का जिक्र होता है तथा महाभारत में मुख्य रूप से दुर्योधन का। मगर आपको बता दें इन दोनों युगों में इनके अलावा भी ऐसे बहुत से पात्र हैं, जिनका जिक्र बहुत ही कम होता है। जिनमें से आज हम आपको बताने वाले हैं महाभारत के ऐसे पात्र के बारे में जिसने महाभारत काल में अपनी अहम भूमिका तो निभाई थी। मगर इनके बारे में बहुत ही कम सुना जाता है। 
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दरअसल हम बात कर रहे हैं, धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सु की। हालांकि बता दें इनका जन्म गांधारी के गर्भ से नहीं हुआ था। कथाओं के अनुसार धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी जब गर्भवती थीं, उस समय धृतराष्ट्र की देखभाल एक दासी किया करती थी। इसी से ही युयुत्सु का जन्म हुआ था। बताया जाता है इनका जन्म उसी समय हुआ जब  भीम और दुर्योधन का जन्म हुआ था। इनसे जुड़ी सबसे खास बात ये थी कि इन्होंने धृतराष्ट्र का पुत्र होवे के बावजूद महाभारत का युद्ध पांडवों की ओर से लड़ा था।
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इसके बारे में ग्रंथों में जो वर्णन किया गया है कि उसके अनुसार कौरव होने के बावजूद युयुत्सु ने सदा धर्म का पक्ष लिया। कहा जाता है जब कौरवों द्वारा द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था तो केवल युयुत्सु एक ऐसा था जिसने कौरवों का पूरी तरह से विरोध किया था। 

इतना ही नहीं महाभारत युद्ध में युयुत्सु ने कौरवों का साथ न देकर पांडवों का साथ दिया था, और उन्हीं की तरफ़ से युद्ध भी लड़ा था। कहा जाता है किृ महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने युयुत्सु को लेकर एक विशेष रणनीति अपनाई थी। जिसके अनुसार युधिष्ठिर ने उसको यानि युयुत्सु रणभूमि में न भेजकर बल्कि उसे योद्धाओं के लिए हथियारों की आपूर्ति की व्यवस्था देखने का काम सौंप दिया था। जिस कारण धृतराष्ट्र के और गांधारी के 100 पुत्रों में से केवल युयुत्सु ही जीवित बचा था। 
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Jyoti

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