जब द्रौपदी ने भीष्म से मांगा पांडवों के लिए जीवनदान

punjabkesari.in Sunday, Nov 03, 2019 - 12:26 PM (IST)

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महाभारत का युद्ध प्रारम्भ हो चुका था। कौरव और पांडव दोनों पक्षों के सैनिक वीरगति को प्राप्त हो रहे थे लेकिन इस युद्ध के शुरूआती दौर में कौरव पक्ष को भारी हानि उठानी पड़ रही थी। पांडवों के युद्ध कौशल के आगे कौरव सैनिकों के शवों के ढेर लग गए थे। पांडव सेना जिस तरह मौत का तांडव दिखा रही थी इससे कौरव महारथी चिंता करने लगे। उस वक्त कौरव खेमे के प्रधान सेनापति की कमान पितामह भीष्म के हाथों में थी। दुर्योधन ने पितामह भीष्म को उलाहना दिया और कहा कि पितामह जान-बूझकर पांडवों के लिए नर्म रुख अपना रहे हैं।
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दुर्योधन की बातों से आहत होकर पितामह पांडवों के वध की घोषणा कर देते हैं। ऐसे में श्रीकृष्ण ने पांडवों की सुरक्षा का उपाय निकाला। श्रीकृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे पितामह भीष्म के शिविर में पहुंचे। श्रीकृष्ण ने शिविर के बाहर खड़े होकर पांचाली से कहा कि अंदर जाकर पितामह को प्रणाम करो और उनका आशीर्वाद लो।
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पांचाली के प्रणाम करते ही पितामह ने उनको अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद देने के बाद उन्होंने द्रौपदी से पूछा कि बेटी, इतनी रात को तुम यहां पर कैसे आई? क्या तुमको श्रीकृष्ण यहां पर लेकर आए हैं? द्रौपदी ने कहा-हां। तब भीष्म ने कहा कि मेरे एक वचन को दूसरे से काटने का काम श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं। इतना कहकर वह शिविर से बाहर आए और श्रीकृष्ण के गले लग गए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि एक बार पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पांचों पतियों को जीवनदान मिल गया। इसी तरह यदि तुम रोजाना पितामह भीष्म, गुरु द्रोण, कृपाचार्य व धृतराष्ट्र को प्रणाम करती तो आज यह रणभूमि रक्त से लाल न होती और युद्ध की नौबत नहीं आती।


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