जानें, क्या है इस्लाम धर्म में अज़ान का महत्व ?

punjabkesari.in Monday, May 13, 2019 - 12:44 PM (IST)

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इस महीने की 07 मई को रमज़ान का महीना शुरू हो चुका है। मुस्लिम धर्म के अनुसार इस महीने को बहुत ही पाक कहा गया है। यही कारण है कि सभी मुसलमान इस पूरे महीने में रोज़े रखते हैं और अपना ज्यादातर वक़्त नमाज़ करने में बतीते हैं। क्योंकि मान्यता है कि इस महीने में अल्लाह अपने बंदों पर पूरी तरह से मेहरबान रहते हैं और उनके लिए जन्नत के दरवाज़े खोल देते हैं। तो आइए रमज़ान के इस खास मौके पर जानते हैं इस्लाम धर्म से जुड़ी कुछ खास बातें-
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आप में से लगभग लोग जानते होंगे कि इस्लाम धर्म से अज़ान का खासा महत्व दिया गया है। इसके मुताबिक हर मुसलमान के लिए अज़ान पढ़ना अनिवार्य है। इस्लाम में मुस्लिम समुदाय अपने दिन भर की पांचों नमाज़ों को बुलाने के लिए ऊंचे स्वर में जो शब्द कहे जाते हैं,उन्हें अज़ान कहते हैं। बता दें अज़ान कह कर लोगों को मस्जिद की तरफ़ बुलाने वाले को मुअज़्ज़िन कहते हैं।

परंतु आप में से बहुत कम लोग जानते हैं कि अज़ान को इस्लाम में क्यों खास माना गया है? साथ ही इसका वास्तविक मतलब क्या होता है? यदि नहीं! तो आइए हम आपको आपके इस प्रश्न के सवाल का जवाब देने की कोशिश करते हैं

इस्लाम के अनुसार रोज़ाना जो अज़ान दी जाती है वह है-
अल्लाह हु अकबर, अल्लाह हु अकबर, अल्लाह हु अकबर

अर्थात- अल्लाह सबसे बड़ा है। मुहम्मद साहब के अनुसार जब कोई अज़ान दे तो आम मुस्लिम को चाहिए कि वह भी इसे दोहराता जाए। अजान में मुअज़्ज़िन कहता है कि मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा किसी और की इबादत नहीं की जानी चाहिए।

मुअज़्ज़िन सब को मिलकर उस अल्लाह की इबादत सलाह के तरीके से करने के कहता है। फिर मुअज़्ज़िन कहता है अगर तुम समझते हो कि दुनिया में बिज़नेस से कामयाब होंगे तो असल कामयाबी ये नहीं है। असल कामयाबी तो उस अल्लाह की इबादत में हैं जिसने तुम्हें पैदा किया। तुम लोग अल्लाह के लिए आते हो, इबादत को आओ या न पर अल्लाह सबसे बड़ा और शक्तिशाली है।
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कहा जाता है कि मदीना तैयबा में जब नमाज़ बाजमात के लिए मस्जिद बनाई गई तो ज़रूरत महसूस हुई कि लोगों को जमात (इकट्ठे नमाज़ पढ़ने) का समय करीब होने की सूचना देने का कोई तरीका तय किया जाए। रसूलुल्‍लाह ने जब इस बारे में सहाबा इकराम (मुहम्मद साहिब के अनुयायी) से परामर्श किया तो इस बारे में चार प्रस्ताव सामने आए:

प्रार्थना के समय कोई झंडा बुलंद किया।
किसी उच्च स्थान पर आग जला दी जाए।
यहूदियों की तरह बिगुल बजाया जाए।
ईसाइयों की तरह घंटियां बजाई जाएं।

ये सभी प्रस्ताव हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को गैर मुस्लिमों से मिलते जुलते होने के कारण पसंद नहीं आए। इस समस्या में हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा इकराम चिंतित थे कि उसी रात एक अंसारी सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने स्वप्न में देखा कि फरिश्ते ने उन्हें अज़ान और इक़ामत के शब्द सिखाए हैं। उन्होंने सुबह सवेरे हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में हाज़िर होकर अपना सपना बताया तो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे पसंद किया और उस सपने को अल्लाह की ओर से सच्चा सपना बताया।

हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद से कहा कि तुम हज़रत बिलाल को अज़ान इन शब्‍दों में पढ़ने की हिदायत कर दो, उनकी आवाज़ बुलंद है इसलिए वह हर नमाज़ के लिए इसी तरह अज़ान दिया करेंगे। इसलिए उसी दिन से अज़ान की प्रणाली स्थापित हुई और इस तरह हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लाम के पहले अज़ान देने वाले के रूप में प्रसिद्ध हुए।
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Jyoti

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