Kundli Tv- क्या ये मुकुट था श्रीराम के वनवास का कारण
punjabkesari.in Thursday, Aug 09, 2018 - 11:40 AM (IST)
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रामायण काल में एक बार राजा दशरथ का मुकाबला बाली से हो गया था। दशरथ की तीनों रानियों में से कैकयी अस्त्र-शस्त्र और रथ चलाना जानती थी इसलिए वह राजा के साथ हर युद्ध में शामिल रहती थी। बालि को ये वरदान प्राप्त था कि उसकी दृष्टि जिस पर पड़ जाए उसका आधा बल उसे मिल जाएगा। जब महाराज दशरथ बाली से हार गए, तब बालि ने उनके सामने शर्त रख दी कि अपनी रानी कैकेयी छोड जाओ या फिर रघुकुल की शान अपना मुकुट दे दो। लोकिन दशरथ ने मुकुट बालि को दिया और कैकेयी को लेकर वहां से चले गए।
अयोध्या वापिस लौट कर भी मां कैकेया को यही चिंता सता रही थी कि रघुकुल की शान बालि के पास है। तभी माता ने रघुकुल की आन को वापिस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और भगवान राम को वन भिजवाया। उन्होंने राम जी से कह दिया था कि बालि से मुकुट वापिस लेकर ही आना है।
वनवास के समय जब बाली को राम जी ने युद्ध में मार गिराया तब बालि ने बताया कि उनका राज मुकुट रावण छल से ले गया है। तो प्रभु आप मेरे पुत्र को अपन सेवा में ले लिजिए, वह अपने प्राणों की बाजी लगा कर वह मुकुट ले आएगा।
कुछ समय बाद जब रावण सीता माता को हर कर लंका में ले गया था, तब अंगद रावण की सभा में गया। उसने अपने पैर इस तरह सभा में जमा दिए कि रावण को खुद आना पड़ा उसे वहां से हिलाने के लिए और जैसे ही वह उसके पैर को हिलाने के लिए झुका तो उसका मुकुट गिर गया। अंगद ने मुकुट उठाया और वहां से भाग गए।
उस राज मुकुट का एेसा प्रताप था कि जिसके पास भी रहा उसी के प्राणों पर आन पड़ी थी। राजा दशरथ ने गंवाया तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी, प्राण भी गए। बालि के पास से रावण लेकर भागा तो उस के भी प्राण गए।
कैकेयी के कारण रघुकुल की आन बची। यदि कैकेयी श्री राम को वनवास न भेजतीं तो रघुकुल का सौभाग्य वापिस न लौटता। इसलिए भगवान राम को माता कैकेयी से इतना प्रेम था।
भगवान राम ने कैसे मांगा कैकेयी से बनवास
कैकेई ने कहा:——
है एक दिन की बात मैं छत पे घमा रही थी।
भीगे हुए थे बाल मैं उनको सुखा रही थी।।
पीछे से मेरी आंखें किसी ने बंद कर लिया।
आंखों का पलभर में सब आनंद लें लिया ।।
मैने कहा आंखों से मेरे हाथ हटाओ ।
उसने कहा पहले मेरा तुम नाम बताओ ।।
मैंने कहा लखन मुझे न आज सताओ ।
उसने कहा लखन नंही हूं नाम बताओ।।
मैंने कहा भरत हमारे पास तो आओ ।।
उसने कहा भरत नही हूं नाम बताओ ।
मैंने कहा सत्रुघन ना मुझको सताओ ।।
उसने कहा सत्रुघन नही हूं नाम बताओ।
जो हाथ हटाओगे तो तुम्हे दान मिलेगा ।।
मुंह मांगा आज तुमको बरदान मिलेगा ।।
जो हाथ हटाया तो छवी थी सामने ।
बनबास का बरदान लिया मांग रामने ।।
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