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punjabkesari.in Wednesday, Aug 29, 2018 - 03:09 PM (IST)
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सामवेद भारत के 4 प्राचीनतम वेदों में से एक है। माना जाता है कि पुराने समय में आर्यों द्वारा साम-गान किया जाता था। सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है, इसके 1875 मंत्रों में से 69 को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं। उनमें से एक के बार में आज हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार सत्य को एक शस्त्र बताया गया है।
सामवेद के एक श्लोक में कहा गया है कि
श्लोक-
ऋतावृधो ऋतस्पृशौ बहृन्तं क्रतुं ऋतेन आशाये।
‘‘सत्य प्रसारक और सत्य को स्पर्श करने वाला कोई भी महान काम सत्य से ही करते हैं। सत्य सुकर्म करने वाला शस्त्र है।’’
श्लोक-
‘‘वार्च वर्थय।
‘‘सत्य वचनों का विस्तार करना चाहिए।’’
वाचस्पतिर्मरवस्यत विश्वस्येशान ओजसः।
‘‘विद्वान तेज हो तो पूज्य होता है।’’
अर्थात: हमारे देश में सत्य की बजाय भ्रम और नारों के सहारे ही आर्थिक, राजकीय और सामाजिक व्यवस्था चल रही है। राज्य ही समाज का भला करेगा यह असत्य है। एक मनुष्य का भला दूसरे मनुष्य के प्रत्यक्ष प्रयास से ही होना संभव है पर लोकतांत्रिक प्रणाली में राज्य शब्द निराकार शब्द बन गया है। करते लोग हैं पर कहा जाता है कि राज्य कर रहा है। अच्छा करे तो लोग श्रेय लेेते हैं और बुरा हो तो राज्य के खाते में डाल देते हैं। इस एक तरह से हम अपने कल्याण की अपेक्षा करते हैं जो कि अप्रकट है।
भारतीय अध्यात्म ज्ञान से समाज के परे होने के साथ ही विद्वानों का राजकीयकरण हो गया है। ऐसे में असत्य और कल्पित रचनाकारों को राजकीय सम्मान मिलता है और समाज की स्थिति यह है कि सत्य बोलने विद्वानों से पहले लोकप्रियता का प्रमाणपत्र मांगा जाता है। हम इस समय समाज की दुर्दशा देख रहे हैं वह असत्य मार्ग पर चलने के कारण ही है।
सत्य एक ऐसा शस्त्र है जिससे सुकर्म किए जा सकते हैं। जिन लोगों को असत्य मार्ग सहज लगता है उन्हें यह समझाना मुश्किल है पर तत्व ज्ञानी जाते हैं कि क्षणिक सम्मान से कुछ नहीं होता इसलिए वह सत्य के प्रचार में लगे रहते है और कालांतर में इतिहास उनको अपने पृष्ठों में उनका नाम समेट लेता है।
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