पढ़ें, भगवान सत्य नारायण की पौराणिक कथा

punjabkesari.in Friday, Sep 13, 2019 - 02:36 PM (IST)

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हिंदू पंचांग के अनुसार आज भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान होता है। बहुत से लोग आज के दिन पूर्णिमा का व्रत करके भगवान सत्यनारायण की पूजा करते हैं। कहते हैं कि व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन जो लोग व्रत नहीं कर पाते वह कथा पढ़कर या सुनकर ही अपनी मनोकामना को पूरा कर सकते हैं। आज हम आपको इसकी कथा के बारे में बताएंगे, जिसको पढ़ने सुनने से व्यक्ति को मोक्ष मिलता है। 
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एक बार नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते हुए देखा। इससे उनका हृदय द्रवित हो उठा और वह अपने परम आराध्य भगवान श्री हरि की शरण में कीर्तन करते पहुंच गए और स्तुतिपूर्वक बोले, ‘हे नाथ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मृत्युलोक के प्राणियों के कष्ट हरने का कोई उपाय बताने की कृपा करें।’

तब भगवान ने कहा, ‘मुनिवर! तुमने विश्वकल्याण की भावना से बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आज मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और महान पुण्यदायक है तथा मोह के बंधन को काट देने वाला है। जिसका नाम है श्री सत्यनारायण व्रत। इस व्रत की कथा सुनने मात्र से ही सब दुख दूर हो जातें हैं और इसका विधि-विधान पूर्वक पूजन करने से मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष को प्राप्त करता हैं।’
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व्रत कथा
काशीपुर नगर के एक गरीब ब्राह्मण को भिक्षा मांगते देखकर भगवान विष्णु जी ने स्वयं ही एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में उस निर्धन ब्राह्मण के पास गेए और कहने लगे, ‘हे विप्रे! श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं। तुम उनका व्रत-पूजन करो जिसे करने से मुनष्य सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत में उपवास का भी अपना महत्व है किंतु उपवास से मात्र भोजन न लेना ही नहीं समझना चाहिए। उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजमान हैं। अत: अंदर व बाहर शुचिता बनाए रखनी चाहिए और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा का श्रवण करना चाहिए। 

श्री सत्यनारायण की कथा बताती है कि व्रत-पूजन करने में मानवमात्र का समान अधिकार है। चाहे वह निर्धन, धनवान, राजा हो या व्यवसायी, ब्राह्मण हो या अन्य वर्ग, स्त्री हो या पुरुष. यही स्पष्ट करने के लिए इस कथा में निर्धन ब्राह्मण, गरीब लकड़हारा, राजा उल्कामुख, धनवान व्यवसायी, साधु वैश्य, उसकी पत्नी लीलावती, पुत्री कलावती, राजा तुंगध्वज एवं गोपगणों की कथा का समावेश किया गया है।
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इस कथा में बताया गया है कि जैसे लकड़हारा, गरीब ब्राह्मण, उल्कामुख, गोपगणों ने सुना कि यह व्रत सुख, सौभाग्य, संपत्ति सब कुछ देने वाला है तो सुनते ही श्रद्धा, भक्ति तथा प्रेम के साथ सत्यव्रत का आचरण करने में लग गए और फलस्वरूप सुख भोगकर परलोक में मोक्ष के अधिकारी हुए।

एक साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से सुना, किंतु उसका विश्वास अधूरा था और श्रद्धा में कमी होने के कारण उसने मन में प्रण लिया कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा। समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। पत्नी ने व्रत की याद दिलाई तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे। समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया। सभी वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया। वहां उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया। उसके अपने घर में भी चोरी हो गई। पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गई। 

एक दिन कलावती ने किसी के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को प्रसाद दिया। तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापिस आने का वरदान मांगा। श्री हरि प्रसन्न हो गए और स्वप्न में राजा को कह दिया कि वह दोनों बंदियों को छोड़ दे, क्योंकि वह निर्दोष हैं। राजा ने अगली सुबह उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया। घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन भर आयोजन करता रहा, परिणाम स्वरुप उसे सांसारिक सुख भोगकर मोक्ष प्राप्त हुआ।
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इसी प्रकार एक बार राजा तुंगध्वज ने वन में गोपगणों को श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा, किंतु अपने अभिमान की वजह से राजा न तो पूजास्थल पर गया, न दूर से ही प्रणाम किया और न ही गोपगणों द्वारा दिया प्रसाद ग्रहण किया। परिणाम यह हुआ कि राजा के पुत्र, धन-धान्य, अश्व-गजादि सब नष्ट हो गए। राजा को फिर ये आभास हुआ कि विपत्ति का कारण सत्यदेव भगवान का निरादर है। तब उसे बहुत पश्चाताप हुआ। वह तुरंत वन में गया और गोपगणों को बुलाकर उनसे सत्यनारायण भगवान की पूजा विधि पूछी और बाद पूजा की भी। फिर उसने उनसे ही प्रसाद ग्रहण किया तथा घर आ गया। उसने देखा कि विपत्ति टल गई और उसकी सारी संपत्ति तथा जन सुरक्षित हो गए। राजा प्रसन्नता से भर गया और अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर दिया।


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