Vivah Panchami 2022: इस दिन एक हुए थे श्री राम व माता सीता, जानिए क्यों इस दिन नहीं होती बेटियों की विदाई?
punjabkesari.in Wednesday, Nov 16, 2022 - 02:57 PM (IST)
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हर साल मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन विवाह पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। जो इस बार 28 नवंबर दिन सोमवार को पड़ रहा है। हिंदू धर्म में इस त्यौहार का अधिक महत्व है। किंवदंतियां है कि इस पावन तिथि पर भगवान राम और माता सीता विवाह के बंधन में बंधे थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार राम जानकी के विवाह से पहले वो एक-दूसरे को मिल चुके थे। इनकी मुलाकात एक अद्भुत संयोग था। विवाह से पहले मिथिला में गौरी माता की पूजा की परंपरा रही है। जानकजी की वाटिका में देवी पार्वती का मंदिर था। देवी सीता यहां अपनी सखियों के साथ देवी पार्वती की पूजा के लिए आई थीं। इसी समय भगवान राम भी अपने गुरु की आज्ञा से वाटिका में पूजा के लिए फूल लेने आए थे। संयोग ऐसा हुआ कि वाटिका में देवी सीता और राम आमने सामने आ गए। देवी सीता ने भगवान राम को देखा और राम की दृष्टि भी देवी सीता की ओर गई।
दोनों को ऐसा लगा जैसे वे जन्म-जन्मांतर के साथ हों। देवी सीता मन ही मन भगवान राम को पति रूप में पाने की कामना करने लगीं जिसका उल्लेख तुलसीदासजी ने रामचरित मानस में किया है। देवी सीता माता पार्वती को पूजने जाती हैं तो मन में भगवान राम की ही छवि बैठी होती है। और श्री राम को पति के रूप में पाने की कामना करती है। देवी पार्वती ने देवी सीता को आशीष देते हुए कहा कि जो वर तुम्हारे मन में बसा हुआ है वही तुम्हें पति रूप में प्राप्त होगा। देवी पार्वती को अनुकूल जानकर देवी सीता अत्यंत प्रसन्न हो गई। मान्यता के देवी सीता के बाएं अंग फड़कने लगे थे। तुलसीदासजी ने इस विषय में लिखा है कि देवी सीता के बाएं अंग का फड़कना शुभ सूचक था कि उन्हें राम ही पति रूप में प्राप्त होंगे।
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रावण ने देवी सीता का हरण करके उन्हें अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा था उस दौरान भी जब हनुमानजी देवी सीता की खोज में लंका आए थे तब देवी सीता के बाएं अंग फड़कने लगे थो जो शुभ सूचक था। राम रावण के वध के समय भी देवी सीता के बाएं अंग ने उन्हें शुभ की सूचना पहले ही दे दी। इसलिए कहा जाता है कि स्त्रियों के बाएं अंग का फड़कना शुभ सूचक होता है। विवाह पंचमी को भगवान राम और देवी सीता के विवाह के कारण उत्तम दिन माना गया है लेकिन लोग इस दिन बेटियों का कन्यादान करने से बचते हैं। इसकी वजह यह है कि देवी सीता को विवाह के बाद लगभग पूरा जीवन कष्ट और संघर्ष में गुजारना पड़ा। एक बार जनकपुर यानी मायका से जाने के बाद वह कभी लौटकर पिता के घर नहीं आई। देवी सीता के दुखमय जीवन को ध्यान करके लोग इस दिन कन्यादान से बचते हैं और इस दिन कोई भी अपनी बेटी की विधाई नहीं करता।