Vighnaraja Sankashti Chaturthi: ऐसे करें विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी पर अपनी समस्याओं को दूर, जीवन में बनी रहेगी सुख-समृद्धि
punjabkesari.in Saturday, Sep 21, 2024 - 04:04 AM (IST)
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Vighnaraja Sankashti Chaturthi 2024: गणेश विसर्जन के बाद मनाई जाने वाली चतुर्थी को विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। सनातन धर्म में संकष्टी चतुर्थी को बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस बार विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का व्रत आज यानी 21 सितंबर को रखा जाएगा। मान्यता है कि इस दिन बप्पा की पूजा करने से धन-समृद्धि और आर्थिक कठिनाईयों से मुक्ति मिलती है। साथ ही इस खास दिन पर ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र का पाठ और मंत्रों का जाप करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश का पूजन करने से सभी विघ्न-दोष दूर होते हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इस दिन भक्त विशेष रूप से मोदक का भोग अर्पित करते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से जीवन में आने वाली कठिनाइयां कम होती हैं और सफलता प्राप्त होती है।
Rinharta Ganesh Stotra ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम् ।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित: ।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत् ॥
Ganesh Mantra गणोश मंत्र
ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
ॐ एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
ॐ महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥
ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा॥
दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥
ॐ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नमः फट्॥
ॐ नमो ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं क्लीं क्लीं श्रीं लक्ष्मी मम गृहे धनं देही चिन्तां दूरं करोति स्वाहा ॥
ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।