Vat Savitri Purnima 2023: पति का बेतहाशा प्यार पाने के लिए आज सुहागिन महिलाएं करें इस तरह पूजा

punjabkesari.in Saturday, Jun 03, 2023 - 07:24 AM (IST)

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Vat Savitri Purnima 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का व्रत होता है। इस दिन भी सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत तरह की व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत को महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारतीय राज्यों में अधिक मनाया जाता है। इस जगहों की सुहागिन महिलाएं उत्तर भारतीय की तुलना में 15 दिन के बाद वट सावित्री का व्रत रखती हैं। जानिए वट पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

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Vat Savitri Purnima fasting date वट सावित्री पूर्णिमा व्रत तिथि
ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 3 जून शनिवार प्रातः 11:16 मिनट से आरंभ होगी और अगले दिन 4 जून, रविवार, प्रातः 09:11 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। ऐसे में वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत 3 जून को रखा जाएगा

Vat Savitri Purnima Puja Timings वट सावित्री पूर्णिमा पूजा मुहूर्त
पूजा का शुभ मुहूर्त: 3 जून शनिवार प्रातः 07:07 मिनट से प्रातः 08: 51 मिनट तक
दोपहर में पूजा का मुहूर्त:  12:19 मिनट से सायं  05:31 मिनट तक  
लाभ-उन्नति मुहूर्त : दोपहर 02:03 बजे से 03:47 बजे तक 
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: दोपहर  03:47 बजे से सायं 05:31 बजे तक है

3 auspicious yoga on Vat Savitri Purnima वट सावित्री पूर्णिमा पर 3 शुभ योग: वट सावित्री पूर्णिमा के दिन यानी 3 जून, शनिवार को 3 शुभ योग बन रहे हैं। 

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शिव योग: प्रातः काल से दोपहर 02:48 मिनट तक।  
सिद्धि योग:दोपहर 02:48 मिनट से पूरी रात। 
रवि योग: प्रातः  05:23 मिनट से 06:16 मिनट तक 

Importance of Vat Savitri वट सावित्री का महत्व
वट या बरगद के पेड़ का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है, जो तीन सर्वोच्च देवताओं- ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व करता है। विवाहित महिलाएं तीन दिनों तक उपवास रखती हैं और ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से वे अपने पति के लिए सौभाग्य लाती हैं, जिस तरह सावित्री ने अपने पति को मृत्यु के मुंह से वापस लाया था।

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Vat Purnima worship method वट पूर्णिमा पूजन विधि
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके सुहागिन महिलाएं साफ वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार कर लें।

बरगद के पेड़ के नीचे जाकर गाय के गोबर से सावित्री और माता पार्वती की मूर्ति बना लें। अगर गोबर नहीं है तो सुपारी का इस्तेमाल कर सकती हैं।

सावित्री और मां पार्वती का प्रतीक बनाने के लिए दो सुपारी में कलावा लपेटकर बना लें।

अब चावल, हल्दी और पानी से मिक्स पेस्ट बना लें और इसे हथेलियों में लगाकर सात बार बरगद में छापा लगा दें और वट वृक्ष में जल अर्पित करें।

फूल, माला, सिंदूर, अक्षत, मिठाई, खरबूज, आम, पंखा सहित अन्य फल अर्पित करें।

फिर 14 आटा की पूड़ियों लें और हर एक पूड़ी में 2 भिगोए हुए चने और आटा-गुड़ के बने गुलगुले रख दें और इसे बरगद की जड़ में रख दें। फिर जल अर्पित करें और घी का दीपक और धूप जलाएं।

अब सफेद सूत का धागा या कलावा लेकर वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करते हुए बांध दें।

5 से 7 या फिर अपनी श्रद्धा के अनुसार परिक्रमा कर लें। इसके बाद बचा हुआ धागा वहीं पर छोड़ दें।

 इसके बाद हाथों में भिगोए हुए चना लेकर व्रत की कथा सुन लें। फिर इन चनों को अर्पित कर दें।

फिर सुहागिन महिलाएं माता पार्वती और सावित्री के चढ़ाए गए सिंदूर को तीन बार लेकर अपनी मांग में लगा लें।

अंत में भूल-चूक के लिए माफी मांग लें।

इसके बाद महिलाएं अपना व्रत खोल सकती हैं। व्रत खोलने के लिए बरगद के वृक्ष की एक कोपल और 7 चना लेकर पानी के साथ निगल लें।

वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड राष्ट्रीय गौरव रत्न से विभूषित
पंडित सुधांशु तिवारी
9005804317

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Content Writer

Niyati Bhandari

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