बुराईयों से बचना चाहते हैं तो आजमाएं ये तरकीब

punjabkesari.in Friday, Feb 17, 2017 - 01:02 PM (IST)

बात उस समय की है जब महात्मा बुद्ध विश्व भर में भ्रमण करते हुए बौद्ध धर्म का प्रसार कर रहे थे और लोगों को ज्ञान दे रहे थे। एक बार महात्मा बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक गांव में भ्रमण कर रहे थे। उन दिनों कोई वाहन नहीं हुआ करते थे सो लोग पैदल ही मीलों की यात्रा करते थे। ऐसे ही गांव में घूमते हुए काफी देर हो गई थी। भगवान बुद्ध को काफी प्यास लगी थी। उन्होंने अपने एक शिष्य को गांव से पानी लाने की आज्ञा दी। उसने देखा वहां एक नदी थी जहां बहुत से लोग कपड़े धो रहे थे। कुछ लोग नहा रहे थे तो नदी का पानी काफी गंदा सा दिख रहा था। 


शिष्य को लगा कि गुरु जी के लिए ऐसा गंदा पानी ले जाना ठीक नहीं होगा, ऐसा सोचकर वह वापस आ गया और भगवान बुद्ध को नदी का पानी पीने योग्य न होने की जानकारी दी। महात्मा बुद्ध को बहुत प्यास लगी थी इसलिए उन्होंने फिर से दूसरे शिष्य को पानी लाने भेजा। कुछ देर बाद वह शिष्य लौटा और पानी ले आया। महात्मा बुद्ध ने शिष्य से पूछा कि नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे ले आए? शिष्य बोला कि प्रभु! नदी का पानी वास्तव में गंदा था लेकिन लोगों के जाने के बाद मैंने कुछ देर इंतजार किया और जब मिट्टी नीचे बैठ गई तो साफ पानी ऊपर आ गया। बुद्ध यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा यह जीवन भी बहते पानी की तरह है। जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है लेकिन जीवन में जब दुख और समस्याएं भी आती हैं तो जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है। 


कुछ लोग पहले पानी लेने गए शिष्य की तरह बुराई को देखकर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर कदम पीछे खींच लेते हैं, वे जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग दूसरे शिष्य की तरह धैर्यशील होते हैं जो व्याकुल नहीं होते। कुछ समय बाद गंदगी रूपी समस्याएं और दुख खुद ही खत्म हो जाते हैं।


तो मित्रो! समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए जीवन रूपी पानी को गंदा कर सकती है लेकिन अगर आप धैर्य से काम लेंगे तो बुराई खुद ही कुछ समय बाद आपका साथ छोड़ देगी। सब्र का फल मीठा होता है।


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