भक्तों पर कृपा करने के लिए देवी, परम कल्याणमयी दिव्य रूप करती हैं धारण

punjabkesari.in Monday, Mar 19, 2018 - 11:55 AM (IST)

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि में मां भगवती आदि शक्ति की पूजा-अर्चना का श्रेष्ठ समय होता है। चैत्र मास के नवरात्रि को वासंतिक नवरात्रि कहा जाता है। इसका प्रारंभ चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इसी दिन से मां के भक्तों के घरों में आदि शक्ति दुर्गा का व्रत व पूजन आरंभ होता है, मां जगतजननी दुर्गा अंधकार, अज्ञानता तथा विपत्तियों से अपने भक्तों की रक्षा कर उन्हें सुख-शांति एवं समृद्धि प्रदान करती हैं तथा समस्त अनिष्टकारी शक्तियों का नाश करती हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार आदि शक्ति के नौ स्वरूपों, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है, उनकी आराधना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है। 


मार्कंडेय पुराण में वर्णित श्री दुर्गा सप्तशती में प्रथम चरित्र में मां महाकाली, मध्यम चरित्र मां महालक्ष्मी तथा उत्तर चरित्र में मां महासरस्वती की महान महिमा का उल्लेख प्राप्त होता है कि किस प्रकार मां भगवती आदि शक्ति दुर्गा जी ने दो पराक्रमी दानवों शुंभ-निशुंभ का वध किया, जिन्होंने इंद्र आदि देवताओं को युद्ध में परास्त कर उन्हें स्वर्ग-विहीन कर दिया। मध्यम चरित्र में महिषासुर वध की अद्भुत कथा तथा उत्तम चरित्र में मां भगवती ने धूम्र विलोचन, चंड-मुंड, रक्तबीज जैसे भयंकर दैत्यों का वध कर उनके अत्याचार से समस्त विश्व को बचाकर देवताओं को त्रिलोकी का साम्राज्य वापस दिलाया।


महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध में विजय प्राप्त करने हेतु आदि शक्ति मां दुर्गा का स्तवन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कहा। तब अर्जुन की स्तुति से प्रसन्न होकर मां भगवती ने अर्जुन को विजयश्री का वर दिया। पुराणों में मां भगवती को योगमाया के नाम से भी संबोधित किया गया है। इस संसार में जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है वह सब योगमाया की ही माया है। गर्ग संहिता के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण की माता देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने ही संकर्षण कर रोहिणी के गर्भ में पहुंचाया, जिनसे बलराम का जन्म हुआ। भगवान श्री कृष्ण स्वयं अपनी माया के संबंध में कहते हैं: 


दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यंते मायामेतां तरन्ति ते।।

यह अलौकिक अर्थात अति अद्भुत मेरी त्रिगुणमयी माया बड़ी दुस्तर है परंतु जो केवल मुझको निरंतर भजते हैं, वे बड़ी सुलभता से इस माया से तर जाते हैं।


ब्रह्मवैवर्तपुराण में भगवान श्री कृष्ण मां दुर्गा की स्तुति में कहते हैं, ‘‘विश्वपूजिते! सृष्टिकाल में सृष्टिरूपिणी, पालनकाल में रक्षारूपिणी तथा संहारकाल में विश्व का विनाश करने वाली तुम मेरी दुर्लघ्य माया हो, जिसने सम्पूर्ण जगत को मोहित कर रखा है, तथा जिससे मुग्ध हुआ विद्वान पुरुष भी मोक्ष-मार्ग को नहीं देख पाता। यह सम्पूर्ण विश्व दुर्गा, भद्रकाली, वैष्णवी, चंडिका, नारायणी, शारदा तथा अंबिका नामों से तुम्हारी पूजा करेगा।’’


आद्याशक्ति, परब्रह्म स्वरूपा सनातनी देवी मां भगवती दुर्गा भक्तों पर कृपा करने के लिए स्वयं निर्गुण रूपा होते हुए भी परमकल्याणमयी दिव्य सगुण रूप धारण करती हैं। वे आदि शक्ति सर्वेश्वरी, परात्परा, सर्वबीजस्वरूपा, सर्वशक्तिरूपिणी, सर्वज्ञानप्रदा देवी, सर्वबुद्धिस्वरूपा, सर्वमंगल मंगला तथा सर्वपूज्या हैं। नवरात्र काल में भक्त रजोगुण तथा तमोगुण का परित्याग कर शुद्ध सत्वरूप में स्थित होकर मां भगवती जगत जननी आदि शक्ति मां दुर्गा की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करते हैं तथा अपने जीवन को कल्याण मार्ग में लगाते हुए उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।


ऋषि मार्कंडेय द्वारा रचित दुर्गा सप्तशती में अद्भुत मंत्रों से उनकी उपासना की गई है:

‘त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया’।
सम्मोहितं देवी समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्ति हेतु:।।

तुम अनंत बल सम्पन्न वैष्णवी शक्ति हो। इस विश्व की कारणभूता परा माया हो। देवी! तुमने इस समस्त जगत को मोहित कर रखा है। तुम्हीं प्रसन्न होने पर पृथ्वी पर मोक्ष की प्राप्ति कराती हो।


‘‘सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रये गुणमये नारायणी नमोस्तुते।
तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्तिभूता सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। हे नारायणी! आपको नमस्कार है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Punjab Kesari

Recommended News

Related News