Teej Festival: यादों में सिमट गया ‘तीज’ का त्योहार
punjabkesari.in Monday, Jul 18, 2022 - 10:20 AM (IST)

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Importance and Significance of Teej Festival: त्योहारों के अलावा मेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के कारण देश-विदेश में पंजाब की एक अलग पहचान है इसलिए प्राचीन काल से चला आ रहा पंजाबी मिट्टी की महक से जुड़ा तीज का त्योहार महिलाओं के लिए बेहद खास मौका होता है। यह अविवाहित युवतियों द्वारा तो मनाया जाता ही है, नवविवाहित युवतियां भी मायके आकर इसे बड़े उत्साह के साथ मनाती हैं। लड़कियां नए कपड़े पहनती हैं और झूले झूलती हैं। लेकिन आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में गांवों से भी यह त्योहार गायब होता जा रहा है। रिश्ते बदल रहे हैं, भाईचारा कम हो रहा है और कई अन्य कारण भी हैं कि हमारी विरासत से जुड़ा यह त्योहार इन दिनों शहरों के पैलेसों या अन्य स्थानों में मात्र एक आयोजन बन कर रह गया है।
Why is Teej celebrated: हालांकि, कई सांस्कृतिक संस्थान हैं जो अपने दम पर पहल कर रहे हैं और यह त्योहार मनाकर लोगों को एक अच्छा संदेश दे रहे हैं। मालवा की धरती का यह प्रसिद्ध त्योहार अब यादों में सिमट गया है, लेकिन जब सावन का महीना आता है तो तीज की याद आना स्वाभाविक है।
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इन दिनों में युवतियां गिद्दा डाल कर माहौल को रंगीन बना देती हैं। करीब 5 दशक पहले माझे और दोआबे में भी यह त्योहार बड़ी श्रद्धा, सम्मान और शालीनता से मनाया जाता था, लेकिन मालवा की धरती के लिए तो यह बहुत ही खास त्योहार रहा है। इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार कर रहीं मालवे की विवाहित युवतियां तीज से हफ्ते पहले ही अपने माता-पिता के घर आकर उत्सव में शामिल होने के लिए जोरों से तैयारी शुरू कर देती थीं।
कुछ साल पहले की ही बात है कि इसे आज जैसे नहीं मनाया जाता था कि किसी खास व्यक्ति को बुला लिया, झूले पर कुछ झोंके ले लिए और त्योहार मन गया।
सावन के महीने में शुरू होने वाला तीज 15 दिनों का त्योहार है। युवतियां खुल कर अपने दिल की बातें करने के लिए मचल उठती थीं, पेड़ों की शाखाओं पर झूले लग जाते।
युवतियों के झुंड उत्सव में देर से आने वाली युवतियों का इस तरह की बोलियों से स्वागत करते थे :
आंदी कुड़िए जांदी कुड़िए,
चुक लिया बजार विच्चों झांवें।
नी काली-काली पैर चुक लै,
तीआं लग्गियां पिप्पल दी छांवें।
आज मानव जीवन बहुत व्यस्त हो गया है। जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। जंगल दिन-ब-दिन कम होते जा रहे हैं, बाग गायब हो रहे हैं। तीज पर जुड़ सकने वाले स्थान भी कम हो रहे हैं इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम ऐसे त्योहारों को बनाए रखें जो हमें विरासत में मिले हैं ताकि हम आने वाली पीढ़ी को इनके बारे में गर्व से बता सकें।