माया के जाल से स्वयं को बाहर निकालें

punjabkesari.in Friday, Feb 16, 2018 - 03:26 PM (IST)

इस शरीर का होना हमें माया की वजह से ही दिख रहा है क्योंकि शरीर का अपना अस्तित्व नहीं होता। हमारा शरीर पांच तत्वों के मेल से बना है-आग, हवा, पानी, मिट्टी और आकाश। इन सभी में से थोड़ा-थोड़ा अंश लेकर हमारे शरीर का निर्माण हुआ है। प्रत्येक शरीर में आत्मा का निवास है। हमारा अहंकार और अभिमान ही हमें ईश्वर से दूर किए रहता है, जिसे हम माया कहते हैं। इसी माया के कारण जीव अपने को ईश्वर से अलग महसूस करता है, जबकि वास्तविक रूप में वह अलग होता नहीं।


इस ब्रह्म रूपी नदी में हमें तो बहते चले जाना है। हम एक क्षण के लिए बुलबुला बन जाते हैं, फिर जिस प्रकार बुलबुला फूटकर नदी में ही विलीन हो जाता है, उसी प्रकार हम भी वापस सृष्टि में विलीन हो जाते हैं। यदि हम किसी बहती नदी से एक कमंडल पानी निकालते हैं और कमंडल के जल को यह अभिमान हो जाए कि अब उसका अलग अस्तित्व हो गया है तो यह उसकी मूर्खता कही जाएगी।


इसलिए ब्रह्म, जीव और माया, इन तीनों को ऐसा भ्रम पैदा करने का मौका न दें। केवल इसी तथ्य पर विचार करें कि संपूर्ण संसार में सिर्फ ब्रह्म ही सत्य है, उसके सिवाय कोई दूसरा सत्य इस संसार में नहीं है। संत कबीरदास ने कहा है कि माया महाठगिनी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इससे साधारण से लेकर विशिष्ट व्यक्ति तक बच नहीं सके हैं। कुछ ऐसे भी ज्ञानीजन हैं, जिन्हें अपने ज्ञान पर गर्व न होकर घमंड है।


याद रखें, घमंड कोई भी व्यक्ति करे, वह उसके व्यक्तित्व को पतन की ओर ले जाता है। जिसने भी घमंड किया, उसने अपने हाथों अपना नाश किया। घमंड भी माया का एक नकारात्मक प्रकार है। माया की लपेट में न आने के लिए व्यक्ति को नकारात्मक गुणों की बजाय सकारात्मक गुणों को स्थान देना होगा।


यह मेरा घर और यह उसका घर, यही तो माया हुई। यही माया हमारे ब्रह्म तक पहुंचने, उन्हें पहचानने और पाने में रुकावट बनी हुई है। जब तक हम अपनी धारणा नहीं बदलेंगे, तब तक ‘अहं ब्रह्मास्मि’ यानी ‘मैं ब्रह्म हूं’ का बोध हमें नहीं हो पाएगा और जब ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का बोध हमें हो जाएगा, उस दिन सारी माया मिट जाएगी और हम संसार के बंधनों से स्वत: ही मुक्त हो जाएंगे।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News