प्रार्थना करते समय ख्याल रखें इन बातों का !

punjabkesari.in Tuesday, Apr 30, 2019 - 01:33 PM (IST)

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हिंदू धर्म में जब हम भगवान के सामने झुककर कुछ मांगते हैं तो उसे प्रार्थना कहा जाता है। लेकिन वहीं अगर हम किसी व्यक्ति से कुछ मांगते हैं तो वह निवेदन कहलाता है। शास्त्रों में प्रार्थना के कई अर्थ बताए गए हैं, प्रार्थना यानि पवित्रता के साथ की गई अर्चना होती है और इसके साथ ही इसका दूसरा अर्थ परम की कामना होता है। 
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कहते हैं कि जब व्यक्ति भगवान को छोड़ संसारिक मोह में पड़ जाता है तो इसका मतलब होता है कि उसके मन से प्रार्थना कम हो गई है। क्योंकि सारी वासनाओं से उठकर जब हम सिर्फ उस परमानंद को पाने की मानस चेष्टा करते हैं, प्रार्थना हमारे भीतर गूंजने लगती है। कई लोग प्रार्थना को मंत्र उच्चारण के साथ भी जोड़ देते हैं, लेकिन प्रार्थना का अर्थ मंत्रों से ही नहीं बल्कि मन की आवाज़ को परमात्मा तक पहुंचाना होता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि अगर हम भगवान को मन से नहीं पुकारेंगे तो हमारी आवाज़ उन तक नहीं पहुंचेगी। भगवान को अपने मन आवाज़ सुनानी है तो अपने मन को काबू में करके उन्हें पुकारना चाहिए। आज हम आपको इसी से जुड़ी कुछ बातों के बारे में बताएंगे-
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शास्त्रों के अनुसार प्रार्थना करने से पहले अपने मन को काबू में करना चाहिए, यानि कि अपने मन को वासना से परे रखना चाहिए और फिर प्रार्थना करनी चाहिए। इसी बात को लेकर संतों ने कहा है वासना जिसका एक नाम “ऐषणा” भी है और जो  तीन तरह की होती है, पुत्रेष्णा, वित्तेषणा और लोकेषणा यानि संतान की कामना, धन की कामना और ख्याति की कामना। कहते हैं कि जब इंसान इन सबसे ऊपर उठकर परमात्मा को पाने के लिए ही प्रार्थना करता है, तभी वह अपने लक्ष्य यानि परमात्मा को पा सकता है। उस परम को पाने की चाह, हमारे भीतर गूंजते हर शब्द को मंत्र बना देती है, वहां मंत्र गौण हो जाते हैं, हर अक्षर मंत्र हो जाता है।

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दूसरी बात यह आती है कि प्रार्थना एकांत में बैठकर करनी चाहिए न कि अकेले में। जी हां, अकेलापन नहीं प्रार्थना के लिए एकांत होना चाहिए और इसी चीज़ में बहुत बड़ा अतंर है। व्यक्ति का अकेलापन अवसाद को जन्म देता है, क्योंकि इंसान संसार से तो विमुख हुआ है, लेकिन परमात्मा के सम्मुख नहीं गया। तो वहीं दूसरी ओर एकांत का अर्थ है आप बाहरी आवरण में अकेले हैं, लेकिन भीतर परमात्मा साथ है। कहते हैं कि जब संसार से वैराग हो जाता है, तभी से एकांत का जन्म हो जाता है। इसलिए अकेलेपन को पहले एकांत में बदलें, फिर प्रार्थना स्वतः जन्म लेगी।

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आगे हम बात करेंगे कि हम प्रार्थना क्यों करते हैं। अगर हम प्रार्थना कर रहे हैं तो उसके पीछे केवल एक ही कारण होना चाहिए कि हम उस परम पिता परमात्मा से केवल उसी को मांग लिया जाए। अपने जीवन में उसके पदार्पण की मांग हो, वो प्रार्थना है। इसलिए. अगर आप प्रार्थना में सुख मांगते हैं, तो सुख आएगा, लेकिन ईश्वर खुद को आपके जीवन में नहीं उतारेगा। क्योंकि जब आप आप भगवान से भगवान को ही मांग लोगे तो बाकी के सारे सुख अपरने आप ही आपके जीवन में आ जाएंगे। 


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