स्वामी प्रभुपाद: जिनके मन, बुद्धि, श्रद्धा तथा शरण श्री कृष्ण में हैं, उनके सारे पाप धुल जाते हैं

punjabkesari.in Sunday, Nov 19, 2023 - 07:26 AM (IST)

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तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा:।
गच्छन्त्य पुनरावृ चिंता ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः:॥5.17॥

अनुवाद एवं तात्पर्य: जब मनुष्य की बुद्धि, मन, श्रद्धा तथा शरण सब कुछ भगवान में स्थिर हो जाते हैं, तभी वह पूर्ण ज्ञान द्वारा समस्त कल्मष (पाप) से शुद्ध और मुक्ति के पथ पर अग्रसर होता है। परम दिव्य सत्य भगवान कृष्ण ही हैं। सारी गीता इसी घोषणा पर केंद्रित है कि कृष्ण श्री भगवान हैं। यही समस्त वेदों का भी अभिमत है। परतत्व का अर्थ परम सत्य है जो भगवान को ब्रह्म, परमात्मा तथा भगवान के रूप में जानने वालों द्वारा समझा जाता है।

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भगवान ही इस परतत्व की पराकाष्ठा हैं। उनसे अधिक कुछ नहीं है। भगवान कहते हैं- 'मत्तः परतरं नान्यत् किञ्चिदस्ति धनञ्जय। कृष्ण निराकार ब्रह्मा का भी अनुमोदन करते हैं- ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम्। अत: सभी प्रकार से कृष्ण परम सत्य (परम तत्व) हैं।

जिनके मन, बुद्धि, श्रद्धा तथा शरण कृष्ण में हैं, अर्थात जो पूर्णतया कृष्णभावनाभावित हैं, उनके सारे कल्मष धुल जाते हैं और उन्हें ब्रह्म संबंधी प्रत्येक वस्तु का पूर्ण ज्ञान रहता है।

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कृष्णभावनाभावित व्यक्ति यह भली भांति समझ सकता है कि कृष्ण में द्वैत है (एक साथ एकता तथा भिन्नता) और ऐसे दिव्य ज्ञान से युक्त होकर वह मुक्ति-पथ पर सुस्थिर प्रगति कर सकता है।

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Content Editor

Prachi Sharma

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