Srimad Bhagavad Gita: अहंकार जाने पर ही मिलती है ‘मंजिल’

punjabkesari.in Saturday, May 28, 2022 - 09:55 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita:
श्री कृष्ण कहते हैं (2.29) कुछ इसे (आत्मा) चमत्कार के रूप में देखते हैं, कुछ इसे चमत्कार बताते हैं, अन्य लोग इसे चमत्कार के रूप में सुनते हैं, इसके बावजूद ‘कोई भी’ इसे बिल्कुल नहीं जानता। यहां ‘कोई भी’ से तात्पर्य उससे है जो आत्मा को समझने के लिए अपनी इंद्रियों का उपयोग कर रहा है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि जब तक इन दोनों के बीच दूरी है, तब तक वह आत्मा को नहीं समझ सकता।
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एक बार एक नमक की गुड़िया समुद्र को जानना चाहती थी। उसने अपनी यात्रा शुरू की। हिंसक लहरों के माध्यम से होती हुई वह समुद्र की गहराई में प्रवेश करती है और धीरे-धीरे उसमें घुलने लगती है। जब तक यह सबसे गहरे भाग में पहुंचती है, यह पूरी तरह से पिघल कर समुद्र का हिस्सा बन जाती है।

कहा जा सकता है कि वह स्वयं समुद्र बन गई है और नमक की गुड़िया अब एक अलग वस्तु नहीं है। नमक की गुड़िया ‘कोई भी’ है और समुद्र ‘आत्मा’ है, जो विभाजन अथवा दूरी को समाप्त कर एकता लाता है।
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नमक की गुड़िया हमारे अहंकार (अहं- कर्ता; मैं कर्ता हूं) के समान है जो हमेशा हमारी संपत्ति, विचारों और कार्यों के बूते हमें वास्तविकता से अलग रखने की कोशिश करती है। अनिवार्य रूप से कोई भी व्यक्ति ‘आम’ नहीं रहना चाहता। लेकिन असली यात्रा एक होने की है और ऐसा तभी होता है जब नमक की गुड़िया की तरह अहंकार समाप्त नहीं हो जाता। इसका अर्थ है कि हमारे पास जो कुछ भी है- चीजें और विचार, दोनों को दांव पर लगाना होगा। यह वह यात्रा है जहां मंजिल उस क्षण मिलती है जब ‘मैं’ तथा ‘मेरा’ पहचान नहीं, महज साधन बन कर रह जाते हैं।

सुख-दुख के ध्रुवों के शिखर पर हमें निर-अहंकार की झलक मिलती है। बोध के इन क्षणों में, हमें इस बात की झलक मिलती है कि हम क्या हैं और इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि हम क्या जानते हैं, हम क्या करते हैं और हमारे पास क्या है।


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Content Writer

Jyoti

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