श्रीमद्भगवद्गीता: ‘भ्रम’ से होती है व्यक्ति की बुद्धि नष्ट

punjabkesari.in Sunday, Oct 24, 2021 - 11:52 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता 

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
क्रोधाद्धवति स मोह: स मोहात्स्मृतिविभ्रम:।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

अनुवाद एवं तात्पर्य: क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता है। जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है तो बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य भव-कूप में पुन: गिर जाता है। कृष्णभावनामृत के विकास से मनुष्य जान सकता है कि प्रत्येक वस्तु का उपयोग भगवान की सेवा के लिए किया जा सकता है। 

जो कृष्णभावनामृत के ज्ञान से रहित हैं, वे कृत्रिम ढंग से भौतिक विषयों से बचने का प्रयास करते हैं। फलत: वे भवबंधन से मोक्ष की कामना करते हुए भी वैराग्य की चरम अवस्था को प्राप्त नहीं कर पाते। उनका तथाकथित वैराग्य फल्गुं अर्थात गौण कहलाता है। इसके विपरीत कृष्णभावनाभावित व्यक्ति जानता है कि प्रत्येक वस्तु का उपयोग भगवान की सेवा में किस प्रकार किया जाए। फलत: वह भौतिक चेतना का शिकार नहीं होता।

उदाहरणार्थ, निर्विशेषवादी के अनुसार भगवान निराकार होने के कारण भोजन नहीं कर सकते, अत: वह अच्छे खाद्यों से बचता रहता है किन्तु भक्त जानता है कि कृष्ण परम भोक्ता हैं और भक्तिपूर्वक उन पर जो भी भेंट चढ़ाई जाती है, उसे वह खाता है। अत: भगवान को अच्छा भोजन चढ़ाने के बाद भक्त प्रसाद ग्रहण करता है। इस प्रकार हर वस्तु प्राणवान हो जाती है और अधपतन का कोई संकट नहीं रहता।

भक्त कृष्णभावनामृत में रह कर प्रसाद ग्रहण करता है जबकि अभक्त इसे पदार्थ के रूप में तिरस्कार कर देता है। अत: निर्विशेषवादी अपने कृत्रिम त्याग के कारण जीवन को भोग नहीं पाता और यही कारण है कि मन के थोड़े से विचलन में वह भव कूप में पुन: आ गिरता है। कहा जाता है कि मुक्ति के स्तर तक पहुंच जाने पर भी ऐसा जीव नीचे गिर जाता है क्योंकि उसे भक्ति का कोई आश्रय नहीं मिलता। 


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Content Writer

Jyoti

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