श्रीमद्भगवद्गीता: ‘भगवान’ की शरण ग्रहण करो

punjabkesari.in Sunday, Jul 18, 2021 - 07:49 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव:।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : हे धनंजय! भक्ति के द्वारा समस्त गर्हित कर्मों से दूर रहो और उसी भाव से भगवान की शरण ग्रहण करो। जो व्यक्ति अपने सकाम कर्म फलों को भोगना चाहता हैं, वे कृपण हैं।

जो व्यक्ति भगवान के दास रूप में अपने स्वरूप को समझ लेता है वह कृष्णभावनामृत में स्थित रहने के अतिरिक्त सारे कर्मों को छोड़ देता है। जीव के लिए ऐसी भक्ति कर्म का सही मार्ग है। केवल कृपण ही अपने सकाम कर्मों का फल भोगना चाहते हैं, किन्तु इससे भवबंधन में वे और अधिक फंसते जाते हैं।

कृष्णभावनामृत के अतिरिक्त जितने भी कर्म स पन्न किए जाते हैं वे गॢहत हैं क्योंकि इससे कर्ता जन्म-मृत्यु के चक्र में लगातार फंसा रहता है। अत: कभी इसकी आकांक्षा नहीं करनी चाहिए कि मैं कर्म का कारण बनूं। हर कार्य कृष्ण भावनामृत में कृष्ण के लिए किया जाना चाहिए। (क्रमश:) 


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Content Writer

Jyoti

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