Srimad Bhagavad Gita: ‘सुख और दुख’ से खुद को मुक्त करें

punjabkesari.in Friday, Jul 22, 2022 - 10:10 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: एक बार कुछ दोस्त यात्रा कर रहे थे और उन्हें एक चौड़ी नदी पार करनी थी। उन्होंने एक नाव बनाई और नदी को पार किया। फिर उन्होंने अपनी शेष यात्रा के लिए भारी नाव को ढोकर अपने साथ ले जाने का फैसला किया, यह सोचकर कि यह उपयोगी होगा। इसके चलते उनका सफर धीमा और कष्टप्रद हो गया। यहां नदी दर्द है और नाव उसे दूर करने का एक साधन है।

इसी तरह अपने दैनिक जीवन में सामना करने वाले कई तरह के दर्द से राहत देने के लिए कई यंत्र और अनुष्ठान हैं। वेद (ज्ञान) अस्थायी दर्द से राहत देने के लिए कई अनुष्ठानों का वर्णन करते हैं। इनमें से कई अनुष्ठान उपलब्ध हैं और आज तक किए जा रहे हैं। जब हम स्वास्थ्य, व्यवसाय, कार्य और परिवार के क्षेत्रों में कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो इन अनुष्ठानों की ओर मुड़ना तर्क संगत प्रतीत होता है।

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कृष्ण अर्जुन को कहते हैं (2.42-2.46) कि वेदों का बाहरी अर्थ बताकर इस जीवन और परलोक (स्वर्ग) दोनों में सुख का वायदा करने वाले मूर्खों के शब्दों में नहीं फंसना चाहिए। वह उसे द्वंद्वातीत और गुणातीत होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ताकि वह आत्मवान बन जाए। जब बड़ा सरोवर मिल जाता है तो उसे छोटे तालाब की जरूरत नहीं होती और इसी तरह आत्मवान के लिए वेद उस छोटे तालाब के समान हैं।

जिस प्रकार हमारी आगे की यात्रा में नाव के बोझ को खुद पर न लेने का ज्ञान निहित है, उसी तरह कृष्ण सुख और शक्ति प्राप्त करने के प्रयासों की निरर्थकता को समझकर वेदों को पार करने का संकेत देते हैं।

गीता के आरंभ में ही कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि इन्द्रियां सुख-दुख जैसे ध्रुवों को पैदा करती हैं और उनको सहन करने के लिए कहते हैं क्योंकि वे नश्वर हैं।

इन्हें पार करने और इन क्षणिकाओं को गवाह बनकर देखने पर उनका जोर है। कृष्ण सुख की कृत्रिम रचना के बजाय प्रामाणिक आनंद के पक्ष में हैं।   

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Content Writer

Niyati Bhandari

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