Srimad Bhagavad Gita: अति सर्वत्र वर्जयेत

punjabkesari.in Tuesday, Apr 23, 2024 - 07:11 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Srimad Bhagavad Gita: श्रीकृष्ण ने सोना, पत्थर और मुट्ठी भर मिट्टी को बराबर मानने की बात कहने के बाद (6.8), कहा ‘‘सुहृद, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, घृणित और बन्धुगणों में, धर्मात्माओं में और पापियों में भी समान भाव रखने वाला अत्यंत श्रेष्ठ है (6.9)।’’

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

श्रीकृष्ण ने चीजों से शुरुआत की और उन्हें समान मानने का सुझाव दिया। फिर वह हमारे जीवन में लोगों की ओर बढ़े तथा हमें मित्रों और शत्रुओं, धर्मी और अधर्मी, अजनबियों और रिश्तेदारों को बराबरी के साथ देखने को कहा। हम अपने आसपास के लोगों का जिस प्रकार वर्गीकरण करते हैं, उनके प्रति हमारा व्यवहार उसी वर्गीकरण पर आधारित होता है।

दिलचस्प बात यह है कि हमारे लिए एक दोस्त दूसरे व्यक्ति का शत्रु हो सकता है और आज का एक दोस्त कल हमारा शत्रु बन सकता है जो दर्शाता है कि ये सभी विभाजन स्थितिजन्य या पक्षपाती हैं इसलिए, श्रीकृष्ण इन विभाजनों को छोड़कर उनके साथ समान व्यवहार करने का सुझाव देते हैं।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita
श्रीकृष्ण इंगित करते हैं कि चीजों, लोगों और रिश्तों के मामले में, लोगों और रिश्तों को उपभोग की वस्तु नहीं मानना चाहिए। ध्यान देने योग्य है कि जिनको लोगों या रिश्तों से कड़वा अनुभव रहा, वे कहते हैं कि उन्हें वह सम्मान नहीं दिया गया जिसके वे हकदार थे। उन्हें उपभोग की वस्तु की तरह इस्तेमाल किया गया।

अंत में, श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘योग उसके लिए नहीं है जो बहुत अधिक खाता है या बिल्कुल नहीं खाता है और न ही उसके लिए है जो बहुत अधिक सोता है या जागता रहता है (6.16)।’’

यहां खाने को इन्द्रियों के रूपक के रूप में लिया जा सकता है। अत्यधिक खान-पान के क्षेत्र में,यह अच्छी तरह से स्थापित है कि हम मन और जीभ को संतुष्ट करने के लिए खाते हैं, न कि शरीर की जरूरतों के अनुसार, जिसके चलते स्वास्थ्य खराब होता है। इसी तरह हमारी अपमानजनक बातचीत और अन्य इन्द्रियों का दुरुपयोग दुख की ओर जाना निश्चित है इसीलिए श्रीकृष्ण इन्द्रियों के उपयोग में संतुलन की बात करते हैं।  

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News