Srimad Bhagavad Gita- विचार करें, आप अपने मित्र हैं अथवा शत्रु

punjabkesari.in Friday, Apr 12, 2024 - 10:02 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita- श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप या तो अपने मित्र हैं अथवा अपने शत्रु। अपना मित्र बनने के लिए उन्होंने सुख-दुख की भावनाओं के प्रति, सोने-पत्थर जैसी चीजों के प्रति और मित्र-शत्रु जैसे लोगों के प्रति इंद्रियों को नियंत्रित करके समत्व बनाए रखने का मार्ग बताया। इसके साथ-साथ वह ध्यान का मार्ग भी सुझाते हैं।

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श्रीकृष्ण कहते हैं भौतिक संपत्ति से रहित एकांत में रहकर, एक साफ-सुथरी जगह पर बैठकर जो ज्यादा नीची या ऊंची न हो, नियंत्रित मन के साथ, पीठ और गर्दन को सीधा करके, चारों ओर देखे बिना, शांत, निर्भय और एकाग्र रहकर और निरंतर स्वयं से एकाकार होने का प्रयास करने से परम शांति प्राप्त होती है।

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संवेदी उत्तेजनाओं के हमले के दौरान समत्व प्राप्त करना कठिन हो जाता है, इसलिए एकांत में रहने से अस्थायी राहत मिलती है। इसका गहरा अर्थ यह है कि भले ही हम शारीरिक रूप से खुद को एकांत में रखते हैं, पर मानसिक रूप से अपने व्यवसायों, परिस्थितियों और लोगों को अपने साथ ध्यान में ले जाने की संभावना रहती है। हमें इन सबको छोड़कर एकांत में रहने में सक्षम होना चाहिए। अंत में, यह युद्ध के बीच भी अर्जुन को मानसिक एकांत प्राप्त करने जैसा है।

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जहां तक भौतिक सम्पत्ति को छोड़ने का संबंध है, यह ध्यान में जाने से पहले अपनी सारी भौतिक सम्पत्ति को दान में देने की बात नहीं है। यह उनके साथ अपने मोह को तोड़ने के बारे में है और जरूरत पड़ने पर इनका उपयोग किया जा सकता है। यह उन्हें ‘मैं’ का हिस्सा नहीं बनाने के बारे में है।

अंत में, श्रीकृष्ण डर को दूर करने की सलाह देते हैं। हमारा बुनियादी डर चीजों या लोगों को खोने का डर है, जो ‘मैं’ का आंशिक नाश है। दूसरी ओर, ध्यान में हमें विचारों और चीजों पर स्वामित्व की भावना को त्यागना होगा और लोगों से अलग एकांत में रहना होगा, इसलिए श्रीकृष्ण हमें एक शाश्वत ध्यान की स्थिति, जो मोक्ष है, प्राप्त करने की दिशा में भय के इस पहलू से अवगत कराते हैं। 


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Content Writer

Niyati Bhandari

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