Srimad Bhagavad Gita: ‘सच्चे भक्त’ में होते हैं ये गुण, आप में कितने हैं

punjabkesari.in Thursday, Jul 21, 2022 - 08:59 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: ईश्वर में आस्था, श्रद्धा तथा विश्वास रखती अध्यात्म की दुनिया में प्रत्येक प्रेमी भक्त के मन में प्राय: जिज्ञासाएं  उत्पन्न होती रहती हैं जैसे कि ईश्वर को कैसा भक्त प्यारा है? ईश्वर की अनुकंपा का विशेषाधिकारी कैसे बना जा सकता है ? सभी भक्त धर्मस्थलों में ईश्वर के दर्शन करने जाते ही हैं परंतु कैसे भक्त के पास/ प्रत्यक्ष ईश्वर को स्वयं चलकर आना पड़ता है ?

समस्त जिज्ञासु प्रेमी भक्तों की ऐसी सुंदर जिज्ञासाओं को शांत करते हुए हमारे सनातनी ऋषि-मुनियों तथा पवित्र ग्रंथों ने स्पष्ट कथन दिया है, ‘‘ईश्वर की विशेष अनुकंपा पाने का सरल उपाय है ईश्वर द्वारा रचित ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु (जड़ व चेतन) को यह समझ कर प्रेम करना कि इसकी रचना मेरे ईश्वर ने स्वयं की है।’’

द्वितीय अपने मन में यह भाव दृढ़ करना कि ‘ईशावास्य मिंद सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत’ अर्थात ईश्वर इस जगत के कण-कण में विद्यमान है।

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ज्यों ही ऐसी निर्मल भावनाओं से किसी का हृदय भर जाता है त्यों ही उसे चहुं ओर ईश्वर का प्रकाश आनंद के रूप में अपने जीवन को दिव्यता/ अलौकिकता प्रदान करता हुआ प्रतीत होने लगता है। ऐसी अवस्था को प्राप्त मनुष्य के रोम-रोम से मैं (अहं), कर्त्ता के स्थान पर तू-तू-तू (वासुदे सर्वम) का दिव्य नाद गूंजने लगता है। इसको महापुरुषों ने ‘पूर्णता की ओर एक कदम’ नाम से संबोधित किया है।
अब प्रश्न उठता है कि यह पूर्णता क्या है ? इसको स्पष्ट करते हुए हमारे सनातन ग्रंथों में कहा गया है कि यद्यपि ईश्वर सर्वथा पूर्ण हैं परंतु फिर भी वे भाव के भूखे और प्रेम के प्यासे होते हैं।

सच्चे भक्तों द्वारा प्रेम और भाव से अर्पित/ समर्पित अपने मन, चित्त और बुद्धि को पूर्णता का वरदान देते नहीं थकते। श्री गीता जी में भगवान कृष्ण कहते हैं : ‘मय्योर्पतमनो बुद्धिर्यो मद्भक्त: स मे प्रिय:’ अर्थात मेरे में अर्पित मन बुद्धिवाला जो मेरा भक्त है वह मेरे को प्रिय है।

तात्पर्य यही है कि ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त करने की कामना करने वाले भक्तों के लिए परमावश्यक हैं भक्ति, प्रेम, क्षमा, नम्रता, उदारता, दयालुता, समर्पण भाव।  

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Content Writer

Niyati Bhandari

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