जानें, श्री कृष्ण जन्मोत्सव से लेकर दही हांडी तक की खास बातें

punjabkesari.in Thursday, Aug 22, 2019 - 12:45 PM (IST)

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श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाए जाने के बाद दही हांडी का पर्व 25 अगस्त, 2019 रविवार को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। जिसे बाल गोपाल श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व को केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पूरी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है।

PunjabKesari Sri Krishna Janmashtami

कृष्ण जन्म कब हुआ था?
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के मध्यरात्रि के रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। कृष्ण जी का जन्म कंस के कारागार में बंद वासुदेव-देवकी की आठवीं संतान के रूप में हुआ था।

जन्माष्टमी का महत्व
स्मार्त और वैष्णव दोनों ही समुदायों के लिए इस पर्व का बहुत खास महत्व माना जाता है। इस दिन सभी भक्तगण भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरुप का श्रृंगार करते हैं, उन्हें सजाते हैं, नए वस्त्र पहनाते हैं। कृष्ण मंदिरों में इस दिन अलग ही रौनक देखने को मिलती है। वृंदावन के श्री बांके बिहारी मंदिर में हजारों श्रद्धालु इस दिन श्री कृष्ण के दर्शन करने यहां आते हैं। इस दिन श्री कृष्ण को झूला झूलने का भी बहुत खास महत्व होता है।

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कृष्ण जन्माष्टमी व्रत
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजन के साथ-साथ व्रत रखना भी बहुत फलदायी माना जाता है। कहा जाता है, कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखने से बहुत लाभ मिलता है। कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज भी कहा जाता है। इस व्रत का विधि-विधान से पालन करने से कई गुणा पुण्य की प्राप्ति होती है।

जन्माष्टमी का व्रत रात बारह बजे तक किया जाता है। इस व्रत को करने वाले रात बारह बजे तक कृष्ण जन्म का इन्तजार करते हैं। उसके पश्चात पूजा आरती होती है और फिर प्रसाद मिलता है। प्रसाद के रूप में धनिया और माखन मिश्री दिया जाता है। ये दोनों ही वस्तुएं श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। उसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण करके व्रत पारण किया जा सकता है। हालांकि सभी के यहां परम्पराएं अलग-अलग होती हैं। कोई प्रातःकाल सूर्योदय के बाद व्रत पारण करते हैं तो कोई रात में प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते हैं। आप अपने परिवार की परम्परा के अनुसार ही व्रत पारण करें।

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जन्माष्टमी की पूजा विधि और नियम
जन्माष्टमी के दिन साधक को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। फलाहार किया जा सकता है। व्रत अष्टमी तिथि से शुरू होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद घर के मंदिर को साफ सुथरा करें और जन्माष्टमी की तैयारी शुरू करें। रोज की तरह पूजा करने के बाद बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति मंदिर में रखे और इसे अच्छे से सजाएं। माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा जी का चित्र भी लगा सकते हैं।

दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करें। मध्य रात्रि को एक बार फिर पूजा की तैयारी शुरू करें। रात को 12 बजे भगवान के जन्म के बाद भगवान की पूजा करें और भजन करें। गंगा जल से कृष्ण को स्नान करायें और उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान को झूला झुलाए और फिर भजन, गीत-संगीत के बाद प्रसाद का वितरण करें।

ज्योतिर्विद् मदन गुप्ता सपाटू चंडीगढ़


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Niyati Bhandari

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