महाभारत के आखिरी दिन ये सच जानकर उड़ गए थे अर्जुन के होश
punjabkesari.in Friday, Aug 23, 2019 - 09:49 AM (IST)
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महाभारत का युद्ध चल रहा था। अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण थे। उसी समय का प्रसंग है। जैसे ही अर्जुन का बाण छूटता, कर्ण का रथ दूर तक पीछे चला जाता। जब कर्ण का बाण छूटता तो अर्जुन का रथ सात कदम पीछे चला जाता। श्रीकृष्ण ने अर्जुन की प्रशंसा के स्थान पर कर्ण के लिए हर बार कहा, कितना वीर है यह कर्ण! जो उनके रथ को सात कदम पीछे धकेल देता है।
महाभारत कथा हिंदी
इस बात से अर्जुन बड़े परेशान हुए। असमंजस की स्थिति में पूछ बैठे, ‘‘हे वासुदेव श्रीकृष्ण, यह क्यों? मेरे पराक्रम की तो आप प्रशंसा नहीं करते एवं मात्र सात कदम पीछे धकेल देने वाले कर्ण को बार-बार वाहवाही देते हैं।’’
श्रीकृष्ण बोले, ‘‘अर्जुन तुम जानते नहीं तुम्हारे रथ में महावीर हनुमान एवं स्वयं मैं वासुदेव कृष्ण विराजमान हैं। यदि हम दोनों न होते तो तुम्हारे रथ का अस्तित्व भी नहीं होता। इस रथ को सात कदम भी पीछे हटा देना, कर्ण के महाबली होने का परिचायक है। ‘‘अर्जुन को यह सुनकर अपनी बात पर ग्लानि हुई।’’
महाभारत की कथा
इस तथ्य को अर्जुन और भी अच्छी तरह तब समझ पाए जब युद्ध समाप्त हुआ। प्रत्येक दिन अर्जुन जब युद्ध से लौटते श्रीकृष्ण पहले उतरते, फिर सारथी धर्म के नाते अर्जुन को उतारते। महाभारत युद्ध के अंतिम दिन वे बोले, ‘‘अर्जुन तुम पहले रथ से उतरो व थोड़ी दूर जाओ। श्रीकृष्ण भगवान के उतरते ही रथ भस्म हो गया। इस बात पर अर्जुन आश्चर्यचकित थे।’’
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भगवान बोले, ‘‘पार्थ! तुम्हारा रथ तो कब का भस्म हो चुका था। भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य व कर्ण के दिव्यास्त्रों से यह नष्ट हो चुका था। मेरे संकल्प ने इसे युद्ध समापन तक जीवित रखा था।’’
संपूर्ण महाभारत के अंत में अर्जुन का अभिमान हुआ चकनाचूर
तब अपनी श्रेष्ठता के मद में चूर अर्जुन का अभिमान चूर-चूर हो गया था। अपना सर्वस्व त्याग कर वे प्रभु के चरणों में नतमस्तक हो गए। अभिमान का व्यर्थ बोझ उतारकर हल्का महसूस कर रहे थे।
गीता श्रवण के बाद इससे बढ़कर और क्या उपदेश हो सकता था कि सब कुछ तो भगवान का ही किया हुआ है। हम तो निमित्त मात्र हैं। काश! हमारे अंदर का अर्जुन इस बात को समझ पाता। घमंड जीवन में कष्ट ही देता है इसलिए अभिमान छोड़ो।
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