Sri Ekambareswarar Temple: तमिलनाडु का एकाम्बेरेश्वर मंदिर, यहां आज भी मौजूद है वो पेड़ जहां भगवान शिव और मां पार्वती ने की थी पूजा
punjabkesari.in Tuesday, Nov 12, 2024 - 06:00 AM (IST)
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Sri Ekambareswarar Temple: एकाम्बेरेश्वर मंदिर या एकाम्बरनाथ मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम तीर्थनगर में स्थित भगवान शिव को समर्पित एक हिन्दू मंदिर है। इसका निर्माण पल्लव राजाओं ने किया था और उसके बाद चोल वंश तथा विजयनगर राजाओं ने इसे बाद में फिर तैयार किया। इस मंदिर परिसर में अनेक धार्मिक स्थल हैं। इस मंदिर की ऐतिहासिक महत्ता भी है क्योंकि इसने अनेक युद्धों में एक किले के रूप में सेवा की है। ऐसा माना जाता है कि यहां अनेक वर्षों से एक आम का पेड़ है जो लगभग 3500 से 4000 वर्ष पुराना है और इस पेड़ की हर शाखा पर अलग-अलग रंग के आम लगते हैं और इनके स्वाद भी अलग-अलग हैं। इसी पेड़ के नीचे मां पार्वती ने भगवान शिव की पूजा भी की थी।
एकाम्बेरेश्वर मंदिर तमिलनाडु राज्य के कांची जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, जो भगवान शिव के एकाम्बरेश्वर रूप को समर्पित है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। कांचीपुरी, जिसे प्राचीन और पवित्र नगर के रूप में जाना जाता है,अपने ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। एकाम्बेरेश्वर मंदिर भगवान शिव के 275 पदालंकार में वर्णित 275 प्रमुख शिव मंदिरों में से एक है, जो पौराणिक और भक्तिपंथी दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। यह मंदिर विशेष रूप से सांस्कृतिक और वास्तुकला के दृष्टिकोण से एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है और यहां की पूजा पद्धतियां, परंपराएं और रचनाएं भक्तों के मन को अत्यधिक संतोष और शांति प्रदान करती हैं।
एकाम्बेरेश्वर मंदिर का इतिहास
एकाम्बेरेश्वर मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और इसके निर्माण का श्रेय विभिन्न शासकों को जाता है। इस मंदिर की स्थापना और विकास के लिए कांचीपुरम के पौराणिक महत्व को भी ध्यान में रखना आवश्यक है, क्योंकि कांचीपुरम को ईश्वर का शहर और सप्त पुरियों में से एक माना जाता है।
कहा जाता है कि एकाम्बेरेश्वर मंदिर का संबंध महर्षि वसिष्ठ और भगवान शिव के साथ जुड़ा हुआ है। प्राचीन किंवदंती के अनुसार, जब महर्षि वसिष्ठ की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए तो महर्षि वसिष्ठ ने भगवान शिव से इस स्थान पर अपनी स्थायी उपस्थिति की मांग की थी, जिससे भगवान शिव इस मंदिर के रूप में इस स्थान पर निवास करने लगे।
मंदिर के बारे में जानकारी मिलती है कि इसका निर्माण पल्लव वंश के शासकों द्वारा किया गया था और बाद में चोल और पांड्य शासकों द्वारा भी इसे सुसज्जित किया गया। एकाम्बेरेश्वर मंदिर का एक अन्य ऐतिहासिक पहलू यह है कि इसे विभिन्न शास्त्रों और संस्कृतियों का मिश्रण कहा जाता है। मंदिर में दक्षिण भारतीय वास्तुकला का प्रभाव देखा जा सकता है, जिसमें बड़े कक्ष, गढ़ और उच्च शिखर हैं।
एकाम्बेरेश्वर मंदिर की वास्तुकला
एकाम्बेरेश्वर मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। इस मंदिर का मुख्य भवन बहुत विशाल है और यहां की वास्तुकला में पारंपरिक दक्षिण भारतीय शैली की छाप दिखाई देती है, जिसमें प्राचीन शिल्पकला के अद्भुत उदाहरण मिलते हैं। मंदिर के परिसर में एक विशाल रथ और अनेक छोटे मंदिर स्थित हैं। मंदिर में बहुत सुंदर और जटिल नक्काशी की गई है, जो इसे एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत करती है। मुख्य मंदिर में भगवान शिव की विशाल मूर्ति के अलावा, भगवान पार्वती की मूर्ति भी स्थित है।
गोपुरम: मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार या गोपुरम बहुत ही भव्य और ऊंचा है। गोपुरम पर सुंदर रूप से भगवान शिव और पार्वती के चित्र उकेरे गए हैं। गोपुरम की संरचना और सजावट मंदिर की वास्तुकला का प्रमुख हिस्सा है।
प्रदक्षिणा पथ: मंदिर में एक विशाल प्रदक्षिणा पथ है, जिसे भक्त अपने दायें हाथ से पूरा करते हैं। यह पथ मंदिर के चारों ओर स्थित है, और इसे पूरी तरह से पार करने के बाद भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है।
संगीत मंडप: मंदिर में एक संगीत मंडप भी है, जिसमें संगीत और नृत्य प्रदर्शन किए जाते हैं। यह मंडप वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां बड़ी संख्या में देवताओं की मूर्तियों और विविध चित्रों के साथ शिल्पकला की अद्भुत संरचना देखने को मिलती है।
वास्तुशास्त्र: मंदिर का निर्माण शास्त्रीय वास्तुशास्त्र के अनुसार हुआ है, जिससे इसे वास्तु के दृष्टिकोण से भी महान माना जाता है। मंदिर की संरचना और स्थान की स्थिति को ध्यान में रखते हुए इसे विशेष रूप से डिजाइन किया गया है, ताकि भगवान की ऊर्जा का संचार पूरे परिसर में हो।