Sohan lal Pathak story: पढ़े, साहस, बलिदान और देशप्रेम सोहनलाल पाठक की शहीदी गाथा
punjabkesari.in Monday, May 19, 2025 - 12:40 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Sohan lal Pathak story: क्रांतिकारी सोहनलाल पाठक के विरुद्ध अंग्रेजों ने राजद्रोह करने और सेनाओं को भड़काने के आरोप लगाकर मुकद्दमा चलाया। उन्हें मृत्युदंड का आदेश दिया गया। पाठक जी को मांडले किले की जेल में रखा गया था। बर्मा के अंग्रेज गवर्नर ने संदेश भेजा कि यदि पाठक जी क्षमा-याचना कर लें तो उनकी फांसी की सजा रद्द कर दी जाएगी। इस पर क्रांतिकारी ने साहस के साथ उत्तर दिया, “मैं क्यों क्षमा-याचना करूं? क्षमा-याचना तो सरकार को मुझसे करनी चाहिए।”
10 फरवरी, 1916 को प्रात: 6 बजे फांसी देने का समय निश्चित हुआ। वीर सोहनलाल पाठक जब फांसी घर पहुंचे, तब भी मैजिस्ट्रेट ने कहा, “पाठक जी मेरे पास आदेश आया है कि यदि आप क्षमा-याचना कर लें तो फांसी का दंड रद्द कर दिया जाएगा।”
मैजिस्ट्रेट के मुंह से क्षमा का शब्द सुनते ही वे आग-बबूला होकर बोले, “मैं कभी क्षमा नहीं मांग सकता। तुम अपना कर्त्तव्य पालन करो और मुझे अपना काम करने दो।”
इसके बाद जल्लाद को फांसी का फंदा डालने की आज्ञा दी गई लेकिन जल्लाद ने इंकार करते हुए कहा, “चाहे मुझे गोली मार दो, लेकिन मैं इस देवता के गले में फंदा नहीं डालूंगा क्योंकि इस पाप से मेरा सर्वस्व नष्ट हो जाएगा।”
इस पर उसे डराया-धमकाया गया और लालच भी दिया गया लेकिन उसने एक भी बात नहीं मानी। अंत में एक मद्रासी ईसाई असिस्टैंट जेलर विलियम को समझाया गया कि यदि गदर पार्टी सफल हो गई, तो वह अंग्रेजों के साथ ही ईसाइयों का भी कत्ल करा देगी। इस तरह भ्रमित कर विलियम के हाथों पाठक जी के गले में फंदा डलवा दिया गया और महान क्रांतिकारी पाठक जी हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर झूल गए।