Smile please: मानव निर्माण के लिए क्या जरूरी है नैतिकता !
punjabkesari.in Wednesday, Jun 14, 2023 - 10:06 AM (IST)

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Smile please: जब हम मानव निर्माण की चर्चा करते हैं तो हमारे मन में यह भाव उत्पन्न होता है कि हम पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर बढ़ें। पशु और मानव दोनों ही एक समान प्राणधारियों के अंतर्गत आते हैं, दोनों की मौलिक आवश्यकताएं प्राय: एक समान ही हैं। आहार, निद्रा, भय, मैथुन में सब प्रवृत्तियां पशुओं और मनुष्यों में एक समान पाई जाती हैं, परन्तु फिर भी दोनों में अंतर है।
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पशुओं का जीवन प्राकृतिक है, इसके विपरीत मानव जीवन सांस्कृतिक है। मानव में कला, विज्ञान और दर्शन का नित्य संवर्धन दिखाई पड़ता है। मानव ने प्रकृति की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके अपने जीवन को भौतिक दृष्टि से बड़ा समृद्ध बना लिया है। उसने प्राकृतिक नियमों का परिष्कार करके अपने भोजन, वस्त्र और मकान को बड़ा सुन्दर, सुदृढ़ और कलात्मक बना लिया है।
इसी भौतिक समृद्धि को प्राय: संस्कृति शब्द से पुकारते हैं, सांस्कृतिक जीवन में कुछ तत्व प्राकृतिक जीवन से बाहर के भी हैं। इन तत्वों को नैतिक तथा आध्यात्मिक तत्व कहते हैं। नैतिक जीवन के मूल में बुद्धि तत्व आवश्यक है। धर्म और नीति का घनिष्ठ संबंध है। जब मनुष्य अपने कर्त्तव्य को ईश्वरीय आज्ञा के रूप में देखता है तो उसके लिए नीति धर्म बन जाती है। नीति, नैतिकता, शिष्टाचार, सदाचार, आचार, शील, चरित्र पर्यायवाची शब्द हैं। राजनियम हमारे कर्मों तक पहुंचते हैं, भावनाओं तक नहीं। यह त्रुटि धर्म पूरी करता है। धर्म का उद्देश्य भावनाओं को पवित्र करना है।
प्रकृति में नैतिकता का कोई विशेष नियम नहीं है। प्रकृति का प्रमुख नियम है कि सक्षम ही जीवित रह पाएगा। ऐसी कहावतें प्रसिद्ध हैं कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, जिसकी लाठी उसकी भैंस इत्यादि, जो प्रकृति के क्षेत्र में बिल्कुल ठीक उतरती हैं। प्रकृति पशु, पक्षी, मनुष्य, आततायी, सबको एक समान वायु, जल, प्रकाश उपलब्ध कराती है, पापी और पुण्यात्मा दोनों समृद्ध भी होते हैं, रोगग्रस्त भी होते हैं और अंत में कालवश भी हो जाते हैं।
इन बातों से कई बार सज्जन मनुष्य क्षुब्ध हो उठते हैं कि संसार में सज्जनता में क्या मिलता है, पापी ही सुख पाते हैं। इस प्रकार के लोग प्राय: संतोष वाले, निष्क्रिय होते हैं। उनमें इतना साहस नहीं होता कि कुछ कर दिखाएं। क्रियाशीलता और साहस नैतिकता के लक्षण हैं। इन गुणों से रहित होकर मनुष्य अपने आपको नैतिक नहीं कह सकते।
यदि मान भी लिया जाए कि किसी सज्जन को नैतिक होने पर भी उसका पुरस्कार नहीं मिला तो यह सोच ठीक नहीं क्योंकि नैतिक पुरुष तो ‘नेकी कर कुएं में डाल’ के सिद्धांत को मानकर निष्काम कर्म करता है और पुरस्कार की आशा नहीं रखता। हम कह सकते हैं कि नैतिक मूल्यों के बिना राष्ट्र की उन्नति सम्भव नहीं। आज अनैतिकता के कारण समाज में अनेक प्रकार की बुराइयां फैल रही हैं इसलिए हम अपने राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो हमें नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में अपनाना पड़ेगा।